वर्ष-:4 अंक -: 1 जनवरी 2021 से मार्च 2021
विज्ञापन एस
एस बिजनेश हब अपनी वेबसीरीज एवं विज्ञापन की SS Film & Modeling HuB
प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी की स्थापना *महिला उत्थान दिवस 02 अप्रैल 2021
को करने जा रहा है। यह कम्पनी अपने मनोरंजक, ऐतिहासिक, लाइफ स्टाईल एवं
देश-दर्शन पर आधारित बेवसीरिज ,डाकुमेंन्ट्री ,विज्ञापन फिल्म एवं शार्ट
फिल्मों के लिए पुरूष एवं महिला कलाकारों का चयन करने जा रहा है *प्रथम
चरण में महिला कलाकारों एवं माडलो का चयन होगा। चयनित को सुवधिाओं के साथ
साथ परिश्रमिक भी दिया जायेगा। *जिन महिलाओं को इनमें रूची हो 7068990410
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होली की सुनहरी यादें तो बचपन से जुड़ी हुई है । होली में मस्ती तो हम बचपन में करते थे । दस पंद्रह दिन पहले से ही योजनाएँ बनाने लगते थे ।मैं बचपन में झारखंड के जारंगडीह में रहती थी । जो हजारीबाग जिले में आता है । वहाँ होली दिन भर चलता था । यानी सुबह से बारह-एक बजे तक रंगों से, पानी में रंग घोलकर खेला जाता है और फिर तीन-चार बजे से होली मिलन और गुलाल मुट्ठी भर भरकर डालते थे । हमलोगों की स्कूल में होली की जिस दिन छुट्टी होती थी । उस दिन स्कूल में स्याही से होली खेलते थे । एक-दूसरे के कपड़ों पर चुपके से पेन से स्याही छिड़क देते थे । पर मजे की बात ये थी कि खुद को बचा कर दूसरों पर छिड़कने का मौका नहीं छोड़ते थे । वैसे स्कूल में मनाही थी । लेकिन हम बच्चों का खुराफाती दिमाग 'जब स्कूल से निकल कर बस में बैठने जाते थे या बैठ जाते थे तब छिड़क देते थे । 'क्योंकि अब शिकायत तो स्कूल खुलने के बाद ही होगी और बाद में तो टीचर भी बस हिदायत देकर छोड़ देते थे ।' फिर तो एक साल के बाद ही होली आएगी ।
होली के दिन सुबह जल्दी उठकर मैं और मेरा भाई पिचकारी, रंग, बाल्टी में रंग भरकर पूरी तैयारी में जुट जाते थे । माँ मालपुए, दही बड़े वगैरह खाने देती थी तो हम जबरदस्ती ठूंस कर बाहर निकलने के लिए उतावले रहते थे । फिर एक बार बच्चों की टोली इकट्ठा होने के बाद तब तक घर नहीं आते , जब तक सभी के मम्मी-पापा आंखें ना दिखाए। फिर शाम को चार बजे से हम बच्चे मिलकर गुलाल में सन जाते थे और सभी मिलकर एक दूसरे के घर जाते मालपुए, गुझिया वगैरह खाते खिलाते थे ।
पर हम कभी ठंडाई नहीं पीते थे क्योंकि उसमें भांग रहता है । यही कहा जाता था हमें । लेकिन एक बार मैं गाँव आयी थी । उस समय मैं आठवीं में थी । कोई समारोह था गाँव में, इसलिए पूरा परिवार जुटा था । वहाँ घर में ठंडाई बनाई गई थी । तीन-चार बाल्टी ठंडाई से भरी रखी थी । उसमें एक बाल्टी बिना भांग वाली थी । फिर भी हम बच्चों को ठंडाई से दूर रखा गया था । क्योंकि क्या पता बच्चे गलती से भांग वाली ठंडाई न पी लें । मैं चाची से चुपके से मांग ली । उन्होंने आधा गिलास बिना भांग वाला दे दिया । मैं फिर बाद में चुपके से गई और वहाँ रखी एक भरी बाल्टी में से एक डेढ गिलास और ठंडाई पी ली । कुछ देर के बाद मुझे कोई कुछ कहता तो मैं हंसने लगती और फिर हंसी रुकती नहीं । मैं खुद को सहज करने की कोशिश करती पर होता नहीं था । मुझे लगा मेरा बड़ा भाई मुझे भौंहे चढाकर देख रहा है । मुझे भी शक हो गया कि शायद मैं भांग वाली ठंडाई पी ली हूँ मेरी चाची कुछ मजाकिया हैं । उन्होंने पूछा "आपने कहीं भांग वाली ठंडाई तो नहीं पी ली ?"
मैं भी सफेद झूठ बोल दी "नहीं तो ।"
मुझे लगा कहीं ये भांडा न फूट जाय । फिर तो मेरी खैर नहीं है । इसलिए जाकर सो गई । शाम को उठने के बाद सिर भारी-भारी लग रहा था । राज की बात ये है कि मैंने आजतक मायके में ये सच नहीं बताया है । आज संस्मण लिखते समय सारी बातें चलचित्र की तरह सामने आ गयी ।
पूनम झा
कोटा,राजस्थान
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