शहरी जीवन और संवेदनहीनता-हेमलता गोलछा

वर्ष-:४ अंक -: 1 जनवरी 2021 से मार्च 2021

विज्ञापन एस एस बिजनेश हब अपनी वेबसीरीज एवं विज्ञापन की SS Film & Modeling HuB  प्राइवेट लिमिटेड कम्‍पनी की स्‍थापना *महिला उत्थान दिवस 02 अप्रैल 2021 को करने जा रहा है।  यह कम्‍पनी अपने मनोरंजक, ऐतिहासिक, लाइफ स्टाईल एवं देश-दर्शन पर आधारित  बेवसीरिज ,डाकुमेंन्‍ट्री ,विज्ञापन फिल्‍म एवं शार्ट फिल्‍मों के लिए पुरूष एवं महिला कलाकारों का चयन करने जा रहा है *प्रथम चरण में महिला कलाकारों एवं माडलो का चयन होगा।   चयनित को सुवधिाओं के साथ साथ परिश्रमिक भी दिया जायेगा। *जिन महिलाओं को इनमें रूची हो  7068990410 पर वाटस्‍एप मैसेज करें।

 गांव की हरियाली देखकर जी नहीं करता कि शहर की ओर लौट कर न जाऊं पर क्या करूं छुट्टियों का वक्त खत्म हो गया हैं। दादी का घर छोड़ अब शहर का रास्ता देखना ही होगा । आज छुट्टी का आखिरी दिन है शहर जाने के लिए सारा सामान बांधना होगा ।  इन 30 दिनों में लापरवाह की तरह इधर उधर सारा सामान बिखेर दिया हैं । अब सारा सामान इकट्ठा करके पैक करना पड़ेगा । मोनू  : अपनी  जिन्स को उठाकर झाड़ती हुई कहती हैं " दादी मां ,दादी मां मेरी काले रंग वाली कुर्ती  नहीं मिल रही है ।आप  ने देखी है कहीं है मेरी कुर्ती ।"
 दादी मां  : "रूक जा ! मैं ही लेकर आती हूं । दादी ने संदूक के ऊपर अपने कपड़ों के साथ  पड़ी कुर्ती को उठाकर मोनू के साथ में दी और कहा रखती हो और कहां ढूंढती हो ।
मोनू :  ओ …... ह  ..……मैं ही रखकर भूल गई। थैक यू दादी मां ।आप बहुत अच्छी हो ,आपकी जगह मम्मी होती तो बिगड़ जाती ।
दादी मां  :  "तुम्हारी मां ऐसा करती है तो इसके पीछे कई कारण  हैं ।वो तुम्हें तुम्हारे भले के लिए ही कहती हैं ।जब तक तुम अपनी चीजों का रख रखाव खुद नहीं करोगी तब तक अपनी जिम्मेदारी के प्रति जागरूक नहीं हो पाओगी  और फिर वो भी तो  नौकरी करती है ।घर और बाहर दोनों की जिम्मेदारी वो उठाती है ।
वो ठीक बोलती है ।"
मोनू : " मुझे से भूल हुई है , दादी मां। आगे से कभी ऐसा नहीं करूंगी ।अपना सब सामान जह पर रखूंगी ।
दादी मां : "शाबाश! मुझे तुमसे यही उम्मीद है ।"
मोनू ने बड़े उत्साह से अपना एक एक समान बेग में रखकर  पैक  कर दिया और मन में सोचने लगी आज से अपने छोटे-छोटे काम, बिना किसी  को परेशान  किए खुद कर लिया करेगी । तभी दादी ने रसोईघर से आवाज लगाई मोनू ओ मोनू आकर खाना खा ले ।बस के समय हो जाएगा । जल्दी से आ जा।
 मोनू : "आई दादी मां ……..।"
मोनू बैग घसिटते हुए आंगन में ले आई और रसोई घर की ओर गुनगुनाते हुए  बढ़ी ।
दादी मां : "बड़ी खुश नजर आ रही हो ।"
मोनू : "नहीं ,  दादी मां । मेरा बिल्कुल मन नहीं , गांव को छोड़कर शहर जाने का ।  गांव  की गलियों में जहां धूल मिट्टी के साथ पांव के निशान छूट जाते हैं । पगडंडी   से चलते चलते  सभी की खैर खबर  लेते लेते कितना आनन्द मिलता है ।वो शहरो की सड़कों पर भूल कर भी नहीं मिलता । "
इतने में दादी  :  "मोनू सुन रही है  सारा सामान बांध लिया  तुमने । देसी घी के लड्डू बनाई  हूं संग लेते जाना। दादी की याद तो आएगी ना वहां । कुछ सामान और बांध देती हूं रास्ते में खा लेना । बाहर का सामान मत खाना । "
मोनू : हां, दादी मां । थोड़ा ज्यादा करके देशी घी के लड्डू देना  मैं अपनी सहेलियों को भी खिलाऊंगी।
दादी मां  : "बहुत सारे बनाए ।सबको दे देना । मां बाबा को भी देना है ।"
मोनू : "हां ठीक है ठीक है।"
दादी मां : थाली में रोटी सब्जी देती है और साथ में दही का कटोरा देती है ।
मोनू : "अब दही क्यों दादी मां ।"
दादी मां : " दही शुभ  माना जाता है और फिर भी पेट के लिए भी अच्छा है ।"
 मोनू  चुप चाप खाना खाती है और थाली को साफ करके बर्तन की टोकरी में रख देती है । मन में विचार करती है कि अभी तो तीन घंटे बाकी  है क्यों न बगीचे से आम तोड़ कर लें आऊं ।अपने साथ ले जाऊंगी ।दादी मां से अनुमति ली और बगीचे में जा पहुंची ।कुछ आम जो पेड़ पर लगे थे माली के तोड़ने को कहती हैं ।बूढ़ा माली आम पेड़ पर चढ़कर तोड़ देता है ।मोनू बूढ़े माली  को इस उम्र में भी इतनी फुर्ती देख हैरान हो जाती है ।
बूढ़ा माली : "बिटिया , ए लो आम ।सब ही तोड़ दी  है "।
मोनू : थैंक यू माली दादू ।
मोनू आम को  छोटे बस्ते में  भर कर  रखती और दोनों हाथों से पकड़ कर आंगन में बस्ता ले आती है । बड़ी तकलीफ़ की  अनुभूति हो रही थी आम के छोटे बस्ते को भी उठाने में क्योंकि इस से पहले कभी उसने इतना भारी बोझ नहीं उठाया । सोचती  है  शहर जाकर टी. वी. देखते-देखते   बैठकर मजे से खाऊंगी। गांव की यादें पुनः ताजा हो जाएगी । दादी ने देसी घी के लड्डू का डब्बा भी ला कर दिया । कुछ रोटियां अचार के साथ बांध कर लें आई ।
दादी मां  : मोनू , रास्ते में भूख लगने पर खा लेना । रोटी और अचार  बांध दिया । "
मोनू दादी की परवाह देख उससे रहा न गया ।  
उसने कहा  : " दादी आप भी हमारे साथ शहर चलिए ना। हम सब साथ रहेंगे खूब मजे करेंगे आप मुझे वहां रोज लड्डू बना कर देना और इसी तरह से ख्याल रखना।"
दादी का चेहरा मुरझा गया कुछ जवाब नहीं दिया।

 मोनू ने फिर कहा- दादी क्या हुआ मेरी बात का बुरा मान गई हो ।यदि तुम नहीं जाना चाहती तो कोई बात नहीं ।
 दादी  :  नहीं ,नहीं  शहर में जाने से मेरा गांव सूना  हो जाएगा ।मेरा आम का पेड़ सूख जाएगा । मेरे आंगन की चिड़िया भूख से बिलख के मर जाएगी जिसको रोज रोटी देती हूं वह गाय मेरा   इंतजार करेंगी । वह आंगन जो पत्तों की झुरमुट से भर जाता है जिस को झाड़ू देने के लिए रोज मेरा आंगन मेरी राह देखता है कौन उसकी साफ-सफाई करेगा ।    नीम के पेड़ के नीचे जो हम रोज बैठकर लंबे समय तक चौपाल पर  बातें करती हैं । वहां वह माहौल दे पाओगी । नहीं नहीं मैं ताजी हवा को नहीं खोना चाहती । मैं इस आबोहवा में ही जीना चाहती हूं । तुम्हारा मन करे तो जब दादी से मिलने आ जाना ।

मुझे शहरों की गलियां  नहीं जाना ।"
मोनू : दादी हम भी बच्चे हैं हमारा भी मन करता है, आपके साथ रहने को ।
 दादी मां : " शहरी जीवन व्यस्तता वाला जीवन,  मेरे लिए खुशगवार ना होगा ।  रोज काम की आपाधापी में संस्कारों और मूल्यों का हनन होते हैं मैंने अक्सर देखा है । "
मोनू :  "दादी को अपने  पास चारपाई पर बिठाकर दादी से  पूछती है क्या सच में शहरी जीवन में संस्कारों और मूल्यों का मर्दन  हो जाता है । आप ऐसा कैसे करती हो क्या आप कभी शहर गई हो ।"
दादी ने हंसते हुए कहा हां हां हां गई थी तुम्हारे दादा जी जब जवान थे तब काम करने की तलाश में शहद गए और मुझे भी संग ले गए । कुछ साल मैंने उसी शहर की गलियों में गुजारे हैं वहां मुझे कहीं छायादार पीपल का पेड़ नहीं मिला ।
मोनू : "लेकिन दादी  मां ये शहरीकरण के कारण हुआ है।  कोई और बात तो नहीं है ।"

दादी मां  : एक बार की बात है मैं और तेरे दादा  गाड़ी लेकर शहर की ओर जा रहे  थे । तभी अचानक मैंने रास्ते में एक जगह भारी तादाद में भीड़ जमा थी । मैंने तुम्हारे दादा जी को कहा एक बार गाड़ी साइड लगा दीजिए , देखती क्या हुआ । जब मैने आगे बढ़ कर देखा तो  सभी लोग मोबाइल फ़ोन से वीडियो बना रहे हैं कोई फोटो खींच रहा है । जब मैंने भीड़ को साइड हटा कर देखा तो एक औरत बेसुध अवस्था में जिसके शरीर से खून टपक रहा है दर्द से कहरा रही है और लोग उसे वीडियो बना रहे हैं । कोई उसकी मदद को आगे नहीं बढ़ रहा है । मैंने उस भीड़ में किसी ऐसे  शेर दिल इंसान को नहीं देखा जो आगे बढ़ कर उसकी मदद करें ।  वहां खड़े सभी लोगों से कहा इसकी मदद करनी चाहिए इसे अस्पताल पहुंचाना चाहिए सभी  यह कहकर पीछे हट गए यह पुलिस केस हो सकता है अस्पताल ले जाएंगे तो हम भी फस जाएंगे । किंतु दादाजी ने मेरा साथ दिया और हम दोनों ने मिलकर उसे उठाया और अस्पताल की ओर ले गए ।  उसका खून काफी बह  चुका  था उसको भर्ती करवा दिया और उसका उपचार करवाया गया। डॉक्टर ने कुछ जरूरी दस्तावेज भरने को कहा क्योंकि मैं अपरिचित थी । इसीलिए  मैं संकोच में थी कि मैं क्या बोलूं किंतु नियमों के बिना कुछ नहीं  हो सकता । उसी समय  पुलिस बयान लेने के लिए आई और मुझसे भी सवाल जवाब करने लगी । मैं यह सोचकर हैरान थी सहायता करने का आधा हौसला इंसानों का इसी कारण शायद खत्म हो जाता है । हम मदद करने के लिए पीछे इसी कारण हट जाते हैं हम भी मुसीबत में फंस जाएंगे । शहरी मन की पीड़ा को मैंने बड़ी बारीकी से उस दिन समझा गांव की गलियां शहर की गलियों से किस प्रकार भिन्न  थी । इसी कारण कहती हूं गांव की गलियां चकाचौंध से लाख भली ।



      हेमलता गोलछा, गुवाहाटी आसाम 


 

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