लड़की वह गोरी होय, भरी हुई तिजोरी होए।
पढ़ी भरपूर होए भई, हो जैसे कोई नायिका।।
रहे मुझको निहारती, पपीहे सी पुकारती।
हो जाऊं मैं शरारती, बन भँवरा कली का।।
तिरछे से नैन हों, मीठे मीठे बैन हों।
दिन हो कि रैन हो, मेरी बने वही राधिका।।
रूप रंग खरा हो, यौवन अंग भरा हो।
मिलावट न जरा हो, मेरा बिगड़े ज़ायका।।
रुत भी सुहानी हो, वह मेरी प्रेम दीवानी हो।
कोई उसका न सानी हो, ऐसी मेरी साधिका।।
रंग है उमंग है, उठी मन में तरंग है।
भीगा भीगा अंग है, मौका जो है होली का।।
धूम हो धमाल हो, हाथों में गोरे गाल हों।
थाल में गुलाल हो और फूलों की हो वाटिका।
मुख में मिठास हो, सुख का उजास हो।
फगुनाई मधुमास हो तो खिले फूल दिल का।।
नाचने में चपला हो, सेहत से सबला हो।
पति रूप तबला हो मौका हो रियाज़ का।।
दाएँ बाएं तकधिना धिन तकधिन तकधिन ।
संगत में सास हो तो बचे क्या जमाई का।।
उससे ही शादी हो, घर में आबादी हो।
बेटे चाहे बारह हों, पर पैदा न हो बालिका।।
चंड प्रचण्ड लिंग भेद पर दण्ड दे वह।
तोड़ दे घमण्ड मेरा, रूप धर काली का।।
डॉ विजय कुमार पुरी
ग्राम पदरा पोस्ट हंगलोह
तहसील पालमपुर जिला कांगड़ा हिमाचल प्रदेश 176059
मोबाइल 7018516119
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