वर्ष-:3 अंक -: 1 जनवरी 2021 से मार्च 2021
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संस्मरण
होली पर्व का नाम सुनते ही हमारी आँखो के सामने रंग - बिरंगे गुलाल और अबीर तैरने लग जाते है। होली पर्व पर बनने वाली गुछिया, पापड़, चिप्स और मठरी जैसे पकवान को याद करके हमारे मुँह में बरबस पानी आ जाते है।
पहले के समय की होली पर्व की बात ही कुछ और थी। बचपन में हम सभी होली पर्व का इंतजार महिनो पहले से ही शुरू कर देते थे। पहले घरो की महिलाएँ महिनो पहले ही पापड़, चिप्स बानने की तैयारियाँ करने लगती थी। हमारा परिवार "संयुक्त परिवार" था, और घर की सभी औरते आलू की लोई को रोटी का आकर देकर उसे धूप में सुखने को डालती थी, और हम घर के सभी बच्चे आलू की लोई के लालच में धूप में पापड़ सुखाने को डालते थे, और अंत में बची आठ दस लोई हम सभी चचेरे भाई बहनो में बाँट दिए जाते थे। जिसे हम खाकर खुशी से झूम जाते थे।
पहले सिले सिलाए कपड़े खरीदने का रिवाज कम ही था और कपड़े खरीद कर होली से 10-15 दिन पहले कपड़े की नपाई के लिए दर्जी के पास जाते थे। होली पर्व के एक दो दिन पहले ही हमें अपने कपड़े दर्जी से कमीज और पैंट के रूप में सिलकर मिला करते थे।होली वाले दिन हम सभी बच्चे सुबह - सुबह ही सबसे पहले घर के बड़ो से अपने पूरे शरीर पर तेल मालिश करवाते थे ताकि बाद में कोई रंग चढ़ न सके और नहाने पर रंग आसानी से उतर जाए। तेल मालिश करवाने के बाद हम सभी बाल्टीयो में रंग घोलते थे, और अपनी पिचकारी लेकर घर के दरवाजे या घर के छतो से अपने गली से गुजरने वाले हर व्यक्ति पर पर रंग डाला करते थे। जब हम लोगो को कोई नही मिलता था तो घर के सामने से गुजरने वाली गाय और भैंसो पर ही अपनी पिचकारियों से रंग डालकर अपनी खुशी पूरी किया करते थे। जब दो - ढाई घंटो बाद हम थक जाते थे तो आखिर में सभी भाई बहन एक दूसरे के चेहरो को लाल,काले पीले, नीले रंगो से रंग दिया करते थे। वो भी क्या होली थी ? उसका मजा ही कुछ और था। जिसे याद करके चेहरे पर भीनीभीनी मुस्कान आ जाती है।
पहले के समय गाँव में ही नही शहरो में भी लोग टोली (समूह) बनाकर एक दूसरे के घरो में होली मिलने जाते थे। ऐसे ही हमारे यहाँ भी हमारे मुहल्ले के सभी लोग आते थे। हमारे घर वाले भी उनके आने की तैयारी पहले से किए रहते थे। होली पर बनाए जाने वाले सभी पकवान पहले से ही ढेर सारी प्लेटो में तैयार रखे जाते थे। पकवान के साथ पान के ढेर सारे "बीड़े" घर में ही बनाकर तैयार रख दिए जाते थे। जब टोली के रूप में लोगो का समूह हमारे घर आता था तो विशेष रूप से हम बच्चो में समूह के बड़ें - छोटे सभी से गले मिलने के लिए उत्सुकता रहती थी, और बड़े- बुजुर्ग भी हम बच्चो की भवनाओ को समझते हुए हमसे गले मिल लिया करते थे। हम बच्चे इस बात का ध्यान दिए रहते थे कि कोई भी गले मिले बिना जा न पाए। जब टोली के सभी लोगो का घर के सभी सदस्यों से होली मिलन हो जाता था। तब वे आगे के दूसरे घरो में होली मिलन के लिए चल दिया करते थे। समूह के साथ हमारे घर के कुछ सदस्य भी समूह में सम्मिलित हो जाया करते थे। इस प्रकार होली मिलन का कारवां बढ़ता चला जाता था।
पहले के समय "वो भी क्या होली थी।" जिसे याद करके ही रोमांचित हो जाया करते है। आज के समय ये सब देखने को आँखे ही तरस जाती है। होली के वो पुराने दिन अब सिर्फ हमारी यादो में ही सिमट कर रह गये है।जो अब सिर्फ हमारी अतीत का हिस्सा है। अब तो बस मन यही कहता है कि "कोई तो लौटा दे वो पुराने दिन"।
रोहित मिश्र, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश
मोबाइल नंबर 7523036082
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