पहले तो यह समझ लें कि यह लेख न कोरोना पर ज्ञान है और न कोई डर, यह लेख पूर्ण रूप से अखंड गहमरी द्वारा कुछ सच बता कर आपके अंदर के डर को निकालने एवं आप के स्वस्थ मनोरंजन की कोशिश है।
आज हर तरफ समाचार पत्रो, न्यूज चैनलों पर महामारी के रूप व गंभीरता व शमशान के चित्र, डाक्टरो के बयान व प्रकाशित हो रहे हैं।
न्यूज चैनलों पर ऐसे-ऐसे नेता, ऐसे-ऐसे समाजसेवी, ऐसे ऐसे डाक्टर आ रहे हैं जिनको उनके ससुराल का पड़ोसी भी नहीं पहचानता, उसकी साली भी उसकी बात नहीं मानती, पत्नी तो उनकी जो चटनी बनाती है वह तो या वही जानते हैं या मैं क्योंकि मैं भी तो वही हूँ। पर्दे पर आकर शुरू हो जाते हैं, उनको जाना रहता है गहमर में बबुरहनी पहुँच जाते हैं मठिया। न कोई ओर न कोई छोर।
डर का समाचार कुछ ऐसा कि मोटो हेडिंग में ''आज कोरोना से 182 मरे, लाशो रखने के लिए जगह नहीं'' और अंदर पतले में लिखा रहता है इनम़े लगभग 30 % कोरोना पेसेंट यानि 70% आम शव । मैं तो पढ़ा लिखा हूँ नही आप ही बताईर्ये कितनी संख्या आम शव की है । तो 70% को गौण कर 30% को हाईलाइट करना कहाँ कि समझदारी है? क्या यह डर फैलाने की कोशिश नहीं? किसी भी शमशान में प्रतिदिन आने वाले शवों की संख्या में कितनी बढ़ोत्तरी है यह नहीं बताया जाता, लेकिन आज कुल संख्या बताई जा रही है।
दूसरी चीज देश में या प्रदेश या मिले में लाख/हजार/सैकड़े में एक्टिव अथवा नये केसो की संख्या, मृतक की संख्या तो दिखाई जा रही हैं लेकिन प्रतिदिन स्वस्थ हुए मरीजों की संख्या को गौण कर दिया जा रहा हैं, आखिर क्यों? क्या यह दहशत फैलाने की कोशिश नहीं?
आप भी जानते हैं कि यदि हम लगातार किसी एक ही चीज को देखे-सुनें तो डर हमारे अंदर आ जाता है। जितने मुँह, जितने पोर्टल उतने लक्षण उतना खतरा। शरीर में होने भी समान्य प्रक्रिया को कोरोंना का लक्षण वता दिया जा रहा है। सदियों से जब मौसम गर्मी से बरसात में बदलता है, जब बरसात से जाड़े और जाड़े से गर्मी में बदलता है, जब लूह चलती है तो सर्दी , खाँसी, गले में खराश, जुखाम़, बुखार, टाइफाइड, आम बात हो जाती है। यही लक्षण कोरोना के भी हैं, इस लिए अंतर करना बहुत मुशकिल हो जाता है। इस प्रकार के खब़र लोगो को मानसिक परेशानी में डाल रही है उनको परेशान कर रही है, और यही डर उनकी शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को कम दे रहा है, उनके हृदयाघात का कारण बन रहा है। अधिक सोच विचार डर से आक्सीजन की कमी हो जा रही है जो प्राणघातक है। आज लोग डर के मारे आक्सीजन सेलेंन्डर मनमाने दाम पर खरीद कर घर में रख लें रहे हैं, जब आक्सीजन सेलेंन्डर रहेगें ही नहीं तो कैसे उसकी रिफलिंग होगी। आप ही बताईये।
भारत में इसके पहले में प्लेग की एंट्री पोर्ट सिटी हांगकांग के जरिएहुई थी। प्लेग से चीन और भारत में मिलाकर सवा करोड़ से ज्यादा लोगों की जान चली गई थी। 1994 में देश को प्लेग महामारी से 1800 करोड़ का नुकसान हुआ। आखिरकार आइसोलेशन और बचाव की कोशिशों के बाद भारत इसपर काबू पाने में सफल हुआ।
1960 के दशक में हैजा फैला। इसने भारत में 8 लाख से ज्यादा लोगों की जान ले ली। 1960 के दशक में एक बार हैजा की एंट्री हुई। 2000 से 2020 के दशक में सोर्स, चिकनगुनिया, डेंगू जैसी महामारीयॉं आई। सबका जम कर मुकाबला हुआ। डेगूं तो भारत की आयुवेद विज्ञान को काफी हद तक मान्यता भी दे दिया, आयुर्वेद से उसका प्रभाव जाता रहा।
तो आप अपने दिमाग से कोराना का भ्रम निकालीये, फेसबुक, वाटस्एप, न्यूज चैनलों, पोर्टलों से कोरोना की हालत, मौते, बचाव सब पढ़ना बंद करीये, जितना जानना जरूरी है आप जान चुके हैं।
मास्क लगाईये, काढा पीजिए, बेमतलब घर से मत बाहर आईये हसते मुस्कुराते रहीये, भाग जायेगा कोरोना।
कुछ नहीं आता तो बकवास कीजिए अपनो के साथ बैठ कर। अखंड गहमरी की कलम से
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