एक दिन साँसों की ये डोर टूट जानी है।
चाहे हो राजा रंक मौत सबको आनी है।।
दो पल हमको भी जी लेने दो मुसाफिर की तरह।
कौन सा हमको यूँ सदियां यहां बितानी है।।
जहां है रंगमंच सबका है किरदार अपना।
हर एक शख़्स की दो पल यहाँ कहानी है।।
इतना इतराते क्यूँ हो अपनी खूबसूरती पे।
वक़्त के साथ सूरतें यहाँ ढल जानी है।।
अपने यौवन पे क्यूँ इतना गुमान करते हो।
आएगा कल बुढ़ापा आज गर जवानी है।।
कभी तो सँग मिरे भी हँस के गुजारो दो पल।
महज़ ये चार पलों की तो जिंदगानी है।।
मुझे दो पल सुकून के अता कर 'रघुवंशी'।
दौलतें शोहरतें यहीं पर छूट जानी है।।
~ राघवेंद्र सिंह 'रघुवंशी'
पत्योरा हमीरपुर उत्तर प्रदेश
Mob- 6387961897
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