तुम छुपी रुस्तम हो माँ
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माँ तुम
छुपी रुस्तम हो
बहुत कुछ
बच्चों से छुपाती हो
अपनी मुस्कान के पीछे
तकलीफें छुपाती हो
मन उदास जो हो मेरा
हंसा कर मुझे अपनी
उदासी छुपाती हो
खाना पड़ जाए
कम जो कभी
प्यार से निवाला
मुझे खिलाकर
अपनी भूख
छुपाती हो
जाने कौन सा
कुबेर का खज़ाना
है तुम्हारे पास
लुटाती हो
मुझ पर सबकुछ
तसल्ली देकर ख़ुद को
घर के सारे
अभाव छुपाती हो
भाग-भाग कर
मिल्खा सिंह बन
जाती हो
काम सारा
निपटाती हो घर का
मुस्कान धरती हो
चेहरे पर
अपनी सारी
थकावट छुपाती हो
वात्सल्य तुम्हारे हर
भाव में माँ
मेरी गलती पर
जब डांटती हो मुझे
दिल के किसी
कोने में
अपार स्नेह छुपाती हो माँ
तुम सच में छुपी रुस्तम हो माँ...
सविता दास सवि
तेज़पुर
असम
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