लघुकथा अनकहे रिश्ते

 



विनोद इस साल हाई स्कूल का इक्जाम दे रहा था, उसका सेंटर काफी दूर पड़ा था, गाँव के कुछ लड़को का भी सेंटर वही पड़ा था। 
विनोद का परिवार बहुत ही सीधा सादा था। सभी लड़के सेंटर पर बस से जाते थे। बस स्टाप से सेंटर तक का रास्ता एक घंटे का था। गाँव के लड़के विनोद से बस में काफी मजे लिया करते थे। यानी रास्ते भर उसे परेशान किया करते थे। विनोद ने लड़को की शिकायत घर में कर दी। तब
विनोद के पिता ने बस स्टाप पर ही सबके सामने लड़को को खूब डाँटा। लड़के विनोद पर और गुस्सा हो गये।
सेंटर , दूसरे बस स्टाप से एक किमी दूर था। साधन का कोई इंतजाम न होने के कारण सेंटर तक पैदल जाना रहता था। लड़के सेंटर के बीच में विनोद को खूब परेशान करने लगे। लड़को का पूरा प्रयास था कि विनोद का इक्जाम किसी तरह छूट जाए। जिसके लिए उन लड़को ने विनोद को नहर में धकेल दिया और भाग निकले।
बगल के खेत में काम कर रहा व्यक्ति विनोद को नहर फँसा देखा तो वह व्यक्ति उसे बचाने के लिए दौड़ पड़ा। उसने किसी तरह विनोद को बाहर निकाला और जैसे ही विनोद के इक्जाम के बारे में उस व्यक्ति को जानकारी हुई, उसने तुरंत खेत में पड़ी साइकिल पर विनोद को बैठाया और उसे अपनी साइकिल सें सेंटर तक पहुँचाया। 
विनोद ने उस व्यक्ति के पैर छूकर और धन्यवाद कर इक्जाम देने चला गया।
विनोद मन ही मन यह सोचता रहा कि अगर आज वो अन्जान व्यक्ति उसकी मदद न करता तो आज उसका पेपर छूट जाता और उसका साल बर्बाद हो जाता।

रोहित मिश्र, प्रयागराज

 

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