आज छः महीने हो गए पर रमेश अपनी बूढ़ी माँ को खर्चे के लिए पैसे नही भेजे थे। बूढ़ी माँ के पास आखिरी बार रमेश साल भर पहले आया था।रमेश के पिता का देहांत 5 साल पहले ही हो गया था। तब से उसकी बूढ़ी माँ उसी के भरोसे रहती थी।वैसे भी रमेश अपनी माँ के पास कम पैसे भेजा करता था। और उसकी माँ कम पैसो में ही गुजारा कर लेती थी। पर अब छः महिने में वो पैसे भी खत्म हो गये थे।
रमेश का अब तो फोन भी नही आता था।जिस कारण उसकी माँ को अपना पेट पालने के लिए मजदूरी करनी पड़ी। उसको भुट्टो के दाने निकाल कर धूप में सूखाने की जिम्मेदारी मिली। वह धूप में ही भुट्टो के दानो को निकाल कर धूप में सुखाती थी। और जब थक जाती थी, तो बीते हुए कल में खो जाती थी कि कैसे वो रमेश के अच्छे भविष्य के सपने देखा करती थी।अपने एकलौते लड़के की हर ख्वाहिश पूरा करने के लिए जमीन आसमान एक कर देती थी। पर उनका इकलौता लड़का जिसकी हर ख्वाहिश वो पूरी किया करती थी। वो आज अपनी माँ की खोज खबर भी लेना जरूरी नही समझेगा।वो यही सोचती रहती है कि काश आज रमेश के पिता जिंदा होते तो उनको ये दिन न देखने पड़ते, यही सोचकर वो अपने आँसू पोछती है, और दुबारा भुट्टे के दाने निकालने लगती है।
रोहित मिश्र, प्रयागराज
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