कविता- ‘तुम बिन’


नहीं है कोई सहारा तुम बिन ।
नहीं है गुजारा तुम बिन ।।
तुम्हारा जीवन मे क्या महत्व ।
ये बताने में शब्द भी नि:शब्द है ।।
किससे कहें मन की बातें तुम बिन ।
नहीं लगता जी हमारा तुम बिन ।।
कैसे जीते हैं हम तुम बिन ।
न कटती हैं विरहा की रातें तुम बिन ।।
वसंत की ऋतु बैरिन भई तुम बिन ।
मेरा दिल हर पल उदास तुम बिन ।।
भीड़ बीच मे हूँ मै अकेला तुम बिन ।
न कोई उम्मीद न कोई आशा तुम बिन ।।

©डॉ. आशुतोष(हिंदी प्राध्यापिका)
राजकीय महाविद्यालय जाटौली, हेलीमंडी, गुरुग्राम, हरियाणा


 

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