मॉं तुम्‍हे प्रणाम


 मां
तुम्हें कोटिश प्रणाम
तुम को कैसे भूला दूं
जो हर बात में तुम हो
आज ही तुम्हें क्यों याद करूं
तुम रहती हो मेरे हृदय के अंदर
मां तुम कभी स्कूल नहीं गई
तब भी तेरे अंदर गीता रामायण का सार था, मां जब तुम विवाह कर अपने ससुराल आई तेरी उम्र थी चौदह साल थी लेकिन तुमने सब की इतनी सेवा की पति,देवर ससुर,चाचा ससुर, चाची सास ।सब के लिए तुम देवी का रुप बनकर आई । वहां कोई भी महिला नहीं थी ।वो लोग खुद ही भोजन बनाते थे लेकिन तुमने आकर सबको सम्भाल लिया ,तन-मन से सबकी सेवा कर सबका दिल जीत लिया था , इतनी छोटी सी उम्र में।समय से पहले ही तुम बड़ी बन गई थी। मगर जब चाचा ससुर,देवर की शादी कि तब  तेरा मान सम्मान परिवार में  बहुत बढ़ गया था ।चार पीढ़िया को एक साथ रखना कोई तुमसे सीखें ।सबको प्यार देना यहां तक कि अपने गहने भी देवरानी चाची सास और उसके बेटे की शादी में देना , मां तुमने एक बार भी मना नहीं किया क्योंकि तेरे मात-पिता के संस्कार थे । मां जब तुम पांच साल की थी तब ही  तेरे मात-पिता ने संसार छोड़ दिया था तेरी ताई जी और भूवा ने पाल-पोस कर बड़ा किया तेरा विवाह किया था तेरी ताई को हम नानी समझते थे बहुत वर्षों बाद पता चला कि वो तेरी मां नहीं थी , मगर मां से बढ़कर थी मां तुम इतने सम्पन्न परिवार से थीऔर इकलौती लड़की थी पूरे चौधरी परिवार में तीस साल तक किसी भी लड़की का जन्म नहीं हुआ था । और सबकी लाडली थी और इधर ससुराल में सत्रह वर्ष की हुई सबकी सास बन गई थी सबका खुब आदर सम्मान मिलता था।    तब ही तेरे पास इतने अच्छे संस्कार थे जो तुमने अपने बच्चों से भी ज्यादा देवर , चाचा ससुर के बच्चों को प्यार दिया। चार पीढ़ी एक साथ रहना सामान्य बात नहीं होती है ।
घर परिवार के लोगों का भी खूब साथ मिलता था । अब जब पौत्र हुआ तब चार साल का तब सब को मेरे पिता जी ने सबको जमीन , पैसे देकर अलग बैठाया  और जो घाटा था उसको मेरे पिताजी ने भर कर फिर अपने बच्चों को पढ़ाया लिखाया और बच्चों की शादी की । मेरी मां का साथ उन्हें बहुत मीला था ।आज भी मेरी मां को सब रंगिया, गोरेश्वर, गौहाटी के क्याल परिवार की मां थी कहते है । मेरी मां के कंठ में मां सरस्वती का वास था और हाथों में लक्ष्मी का वास था ।
मेरी मां के चरणों में कोटिश प्रणाम करते हुए विराम देती हूं।

ममता गिनोड़िया मुग्धा

जोराहाट, आसाम 



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