परिन्‍दा-अरूणा

 मैं एक परिंदा हूं ।
जहां है जिस हाल में है
 मैं एक परिंदा हूं।
 मेरे जो अपने  थे
पता नहीं सब कहां खो गए थे।
मैं हमेशा उन्हें ढूंढती रहती
 परंतु वह परिंदा अब कहां।
 मैं जब बादलों में देखा ।
पानी के लिए तरसा ।
कड़ी धूप में भटक रहा।
 पता नहीं  ढूँढू कहाँ
मैं एक परिंदा हूं ।
आकाश में पंछी हवा में
उड़ते देखा।
 जिसने मुझे  उड़ना सिखाया ।
उसने अपनी गोद में सुलाया ।
मेरी परछाई तलाशने लगी।
उसी ने आज  तूफान उठाया ।
 अपने घर को ताक रहा था। मकान में झुठी ममता से भरमाया।
सहसा एक परिंदा हूं।
परिंदे पंख कभी  शान थे मेरे ।
उस पर कभी था मेरा हम।
 उसे देख भरता दम ।
एक-एक करके सब टूट गए।
 समय के साथ मैं हारा।
 कल की आस में बेसहारा ।
सदियों से मैं कुचल गया।
 आज अपना घमंड
बिखरते देख रहा था ।
चंद बची सांसों को गिनता रहा।
 देखता घुरता एक परिंदा हूं ।
मैं एक परिंदा हूं।
धन्यवाद।

वी अरूणा आंध्र प्रदेश मातृभाषा तेलुगू।
कोलकाता।
9830924387


 

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