लघुकथा -मजदूर


अरे सुनते हो राजू के पापा.... देखो बारिश में छत से पानी टपक रहा था, अब होली भी बीत गर्ई है। अब तो घर की मरम्मत करा दो.....
राजू के पापा - हा ... अब होली भी बीत गई है.... और..... पर....अगर....
राजू की मम्मी - अब अगर मगर कुछ नही, अब मरम्मत करवा भी दो.....
राजू के पापा - ठीक है...... तुम कहती हो तो करवा देता हूँ.....
दूसरे दिन राजू के पापा एक मिस्त्री और मजदूर लेते आए...
मिस्त्री मजदूर राजू के मम्मी पापा को सीधा समझकर खूब काम चोरी करने लगे। दोनो ही काम जल्द खत्म कर देते। जैसे ही 4.30 बजता वैसे ही मिस्त्री के मोबाइल का अलार्म बज जाता था।
पहले दिन तो ध्यान नही दिया राजू की मम्मी ने, पर दूसरे दिन उन्होने इस प्वॉइंट को नोट कर लिया। उन्होने राजू के पापा से ये बात बताई, और दोनो मिया बीबी ने फैसला किया की इस मिस्त्री और मजूदर को कल के बाद से नही बुलाएगे।
तीसरे दिन भी मिस्त्री और उसका मजदूर काम चोरी करने लगे।
शाम को 5 बजे काम खत्म करके अपनी मजदूरी लेने के लिए खड़े हो गए दोनो..... तो राजू की मम्मी बोली.... अब काम खत्म हो गया, अब मत आना.....
मिस्त्री..... पर अभी तो वहाँ पर कर्ई जगह दरारे है....
राजू की मम्मी -  नही नही.... वहाँ से पानी नही टपकता है.....
मिस्त्री और उसका मजदूर समझ गये कि उनकी कामचोरी पकड़ी गई है..... पर अब वो करते भी क्या.... चुपचाप चले गये।
दूसरे दिन राजू के पापा दूसरे मिस्त्री और मजदूर लेते आए.... जिन्होने शाम 7 बजे तक काम किया, और दो दिन में ही चार दिन का काम निपटा दिया। जिससे राजू की मम्मी बड़ी खुश हुई और आखिरी दिन मजदूरी के साथ दोनो को 100-100 रु अतिरिक्त दे दी। जिसे पाकर दोनो मिस्त्री मजदूर खुशी खुशी अपने घर चले गए।

रोहित मिश्र, प्रयागराज

 


 

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