माना कि गति जीवन का साज है ।किंतु यादे वो आवाज हैं जो हमें फिर फिर बीते हुए समय में खींच ले जाती हैं । मेरी माँ ऐसी ही वो आवाज थीं, जिन्हें याद कर जीवन के सकल साज स्वतः ही बज उठते हैं । माँ __ औपचारिक शिक्षा की दृष्टि से देखें तो पूर्णतः अशिक्षित महिला की श्रेणी में आएंगी किन्तु व्यवहारिक रूप से शिक्षित उनके जैसा दूसरा कोई नहीं दिखता ।कभी कभी तो लगता है कि मुन्शी प्रेमचन्द ने धनिया का पात्र मेरी माँ को ही देख कर गढा होगा । मुहावरों और कहावतों का चलता फिरता ग्रन्थ अगर किसी को देखना है, तो वह मेरी माँ ही थीं ।आज हिंदी से स्नाकोत्तर डिग्री है मेरे पास और सुशिक्षित बुद्धिजीवियों से युक्त पारिदृश्य ही मेरा वातावरण है ।किंतु जन्म से जितनी लोकोत्तियाँ, मुहावरे और कहावतें मैने अपनी माँ से सुनी है, कहीं किसी एक ही पुस्तक या व्यक्ति में कभी नही देखी ।
मन आज भी बचपन का पाला छूने दौड़ता है तो दरवाजे पर माँ बैठी हुई नज़र आती हैं । मकान के बड़े से बरामदे को पार करते ही बाहर एक छोटी सी सीढ़ी के दोनों तरफ दो बड़े बड़े चबूतरे जिन पर शाम होते ही माँ पानी से अच्छी तरह से छिड़काव कर देती थी ।फिर दोनों तरफ दो दो तख़्त डाल दिये जाते हैं । बस संध्या की चौपाल यही जमती थी । इस पूरे चौपाल की मेहमानवाजी एकमात्र मेरी माँ के जिम्मे थी । वह यह कार्य बड़े शौक से करती थी ।सबसे सबका व्यक्तिगत रूप से हाल चाल पूछतीं और यथा संभव निशुल्क परामर्श भी प्रदान करती । रेलवे स्टेशन के ठीक सामने मेरा घर था । अतः लगभग प्रत्येक यात्री मेरे घर के सामने से ही गुजरता । माँ सब पर अपनी दिव्य दृष्टि लगाए रखती और लगभग सभी से पानी पूंछ लेती। पानी पीते वक़्त औपचारिक बातचीत के दौरान माँ उसका पूरा इंटरव्यू ले लेती और उसके आवागमन क्षेत्रों की समस्त भौगोलिक जानकारी इकट्ठी कर लेती थीं ।स्मरण शक्ति तो उनकी अद्भुत थी । सब कुछ याद रहता था उन्हें ।सुबह से शाम तक समस्त उत्तरदायित्वों को निभाते हुए भी वह घर के सामने से हर गुजरने वालों पर निगाह रखतीं, सबको पानी पूंछती और फिर सबसे एक आत्मीयता जोड़ लेती। वह कभी भी घर से बाहर कहीं नहीं गयी ।लेकिन पूरे शहर की सबसे अधिक भौगोलिक जानकारी मेरी माँ के पास ही थी । वह हर भूले भटके को इतना सटीक पता बताती कि लगभग हर कोई आश्चर्य करता।
हम तीनो भाई बहन अपनी माँ को जगत माता कहकर चिढ़ाया करते थे । मैं तो आज भी उन्हें जगत माता ही समझती हूँ ।उनकी अनुपस्थिति पूरे मुहल्ले को खलती थी । क्योंकि वह सबके दुख दर्द में सम्मिलित रहती थीं ।माँ की रसोई भी लगभग राज रसोई थी , जिसमें सबके लिए हर समय खाना उपलब्ध था ।
वह इतने प्यार से सबको खाना पूंछती कि पेट भरा होने पर भी खाने को मन करता । पड़ोस में किसी कुत्ते के भी बच्चे होते, तो उसकी 15/20 दिन तक की तीमारदारी माँ अपने सर ओढ लेती ।उसके लिए एक छोटा सा ईंटो का घर बनाती । घर के पुराने कपड़ो से बिस्तर बनाती और फिर प्रतिदिन नियमित समय पर उसके लिए अरहर की दाल का पानी तैयार करती । उसके भी पूरे खाने की व्यवस्था देखती। कमाल की बात थी कि उनके किसी भी कार्य में मेरे पिता जी कभी भी दखलंदाजी नहीं करते ।
माँ हमारे लिए सबसे अच्छी शिक्षिका थी ।मैं रात के एक बजे तक पढ़ती तो वह बराबर मेरे बगल में बैठी रहती । कभी जरा सा भी हिलती तो तुरंत पूंछती कि क्या चाहिए । कई बार तमाम तरह की बातों पर मेरा मनोबल टूटा, तब मैं उनके सामने रो देती ।ऐसे में मुझे समझाने के लिए वह सबसे अच्छे उदहारण रखती ।आज जबकि मैं स्वयं एक शिक्षिका हूँ । बच्चो को समझाते वक़्त माँ याद आ जाती हैं । आज मैं जानती हूँ कि माँ कोई ऐतिहासिक पात्र नहीं थी। न ही किसी साहित्यिक पात्र से उनका नाता था । पर यह सबसे अच्छा साहित्य था जिसे मैने अपनी माँ से सीखा।
ममता देवी
प्रवक्ता _अंग्रेजी
राजकीय बालिका इंटर कॉलेज चुन्नीगंज
कानपुर नगर
Contact No__ 8299173507
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