जिंदगी जिंदादिली का नाम है । हास्य और सकारात्मकता हमारे मन को स्वस्थ रखता है । जब हम मन से स्वस्थ होते हैं तो हमारा तन भी स्वतः ही स्वस्थ रहता है । पहले के लोगों में सकारात्मकता अधिक था ।
पहले की अपेक्षा आजकल की हमारी जीवन शैली में बहुत परिवर्तन हो चुका है । हमारा रहन-सहन, हमारी शिक्षा प्रणाली, आरक्षण इत्यादि हमारे जीवन को प्रभावित करता है । समयानुसार हमारी जरूरतें भी बहुत बदल गई है । अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए हम सभी को परिश्रम के साथ-साथ जद्दोजहद करनी पड़ती है क्योंकि हर क्षेत्र में प्रतियोगिता है । जहाँ आरक्षण भी अपना पैर जमाया हुआ है ।
जीतोड़ मेहनत के बावजूद नाकामयाबी, फिर तनाव और अवसाद । ऐसे में व्यक्ति हास्य कहाँ से लाएगा ? जब अंदर खुशी नहीं तो लेखन में हास्य कैसे संभव है ? इतना ही नहीं टी.वी., मोबाइल, विडिओ गेम, आदि से भी नकारात्मकता ही आती है ।
समाज से दूरी , जीवनयापन के लिए परिवार से दूर रहना व्यक्ति को अपने में समेटता जा रहा है । अब दोस्त भी पहले की तरह रहे नहीं । आजकल हम हर काम तनाव में ही करते हैं ।जब हम खुलकर हंस ही नहीं पाते हैं । तो हास्य लेखन कैसे कर पाएंगे ।
यही वजह है कि हम दु:ख, दर्द और खुशी भी लिख लेते हैं लेकिन स्वस्थ हास्य नहीं लिख पाते हैं । जबकि हास्य हमें स्वस्थ रखने में अहम् भूमिका निभाती है । इसलिए हमें स्वयं को हमेशा नकारात्मकता से दूर रखकर सकारात्मक रखने की कोशिश करना चाहिए। क्योंकि एक स्वस्थ मन ही स्वस्थ विचार उत्पन्न करता है और स्वस्थ विचार ही स्वस्थ रचना का सृजन कर सकता है ।
--पूनम झा
कोटा,राजस्थान 01-06-2021
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