सूखे पत्तों की सी इस जिंदगी में
चिरो जो आदमी के सीने को तो
पता चल जाएगा कि
इसमें बारूद का एक गोला पड़ा हुआ था
जो एक चिंगारी के भड़कने के इंतजार में
अब सिमट- सा गया है एक घेरे में
जिसका दायरा इतना छोटा पड़ गया है कि
अब तो शायद एक बूंद ही रह गई
फिर भी उसे इंतजार है सीने को चीरे जाने की
ताकी सारा गुब्बार निकाल दिया जाय
और एक बार फिर एहसास हो
सुकून,शांत सुखद जिंदगी की
सुख की नई अनुभूति हो
इस दिल को आराम मिलेगा ये सोचकर कि
अब तो कोई बारूद नहीं जो फटेगा
ये बता देना भी जरूरी है ए दोस्त कि
ये बारूद या चिंगारी
किसी एक में नहीं सुलगती
ये हर आदमी के दिल में है
जो चाहता है प्यारी सी जिंदगी हो
जिसमें प्रेम प्रफुल्लित हो
डॉ रचना ग्रोवर
प्रो.बी.एम.यू रोहतक(हरियाणा)
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