हम उस देश के वासी है ! जिस देश में गंगा बहती है!! कितना गर्व महसूस करते हैं हम ये बात कहने में..... क्या उतना परवाह और कदर भी करते हैं गंगा की !..?
एक तरफ तो आस्था और विश्वास के साथ गंगा को हम माँ कहते हैं और दूसरी तरफ भौतिक विकास के नाम पर उसी विकास से निकलने वाली सारी गंदगी को उढ़ेल देते हैं उसी माँ के उपर .. फिर चिल्लाते हैं कि गंगा बचाओ , गंगा स्वछता अभियान चलाओ आदि |
मंथन करने योग्य बात यह है कि गंगा के देश में रहने वाले इन्हें ढकेल ढकेल कर अपनी ईच्छा पुर्ति के लिए सिमटा कर छोटी करने वाले हम ! इनकी गोद ( तटों ) को गंदा करने वाले हम ... तो बंधुओं बचाएगा कौन !!!!?
क्या यह सत्य नहीं है कि हम ही नई बसावट के लिए गंगा किनारे के पुण्य लाभों का प्रलोभन दे - ले कर यहाँ अपना निवास बनाने को उतावले रहते हैं |
लेकिन निवास बनवाते समय इस बात का कतई बोध रहता भी है कि निवास बनवाएंगे तो गंदगी भी हम ही फैलाएंगे ' यदि नहीं तो इस बात का कोई उत्तर है किसी के पास के वहाँ बने घरों के कूड़े , टाॅयलेट की गंदगी , स्नान घर की गंदगी को उठा कर डालने दस - बीस किलोमीटर दूर जाएंगे.... नहीं ना... और तो और उनके तटों से सटे वन संपदाओं को पिकनिक एवं हनीमून के बहाने अपनी मौज मस्ती के लिए प्लास्टिक आदि के कूड़ा करकट बिखेर कर प्रदुषित भी हम ही करेंगे फिर जब कोई विशेष दिवस या अभियान आएगा तो शामिल हो कर गला भी हम ही फाडेंगे |
अतः क्षमा चाहते हुए हम हम ही से कहना चाहेंगे कि यदि गंगा माँ है तो उन्हें ना किसी अभियान की आवश्यकता है और ना ही किसी विशेष दिवस की...... वे तो आदी से अंत तक अविरल , अटल , अमर जीवन दायिनी धारा है | क्योंकि हमें पता है जिन ठाकुर जी की चरण कमलों से वें अवतरित हुईं हैं उनकी कृपा से प्रत्येक माह की अमावस्या को श्री वृंदावन धाम ( 11 कि. मी. ) की पैदल परिक्रमा करते इतने वर्षों में माँ गंगा की तरह माँ यमुना की हर दशा को अच्छे से देखा है साथ ही यह भी महसूस किया कि माँ की ममता, उनका प्यार और आशीर्वाद जब उन्हीं के लिए भार हो जाए तो वही माँ रौद्र रुप भी धारण करती है |
इन्हीं परिक्रमा के मार्ग पर जब हमने माँ यमुना के जल को प्रदुषित करते एक परम भक्त से पूछा तो वे बड़ी शालीनता से बोले " अरे मैडम ! आप नहीं जानती ये तो जगत जननी माँ है !! और माँ अपने बच्चों की गंदगी से कभी नहीं कतराती ... वो तो अपने बच्चों के मल मूत्र और सारी गंदगी सब समा लेती है अपने भीतर ' माँ का तो हृदय ही बहुत विशाल होता है |
उस समय हम कुछ देर के लिए अंधे भैरे गूंगे से हो गए |
लेकिन हमने कहा अवश्य कि माँ को अपनी हर प्रकार की गंदगी दे कर उनकी दया धैर्य और ममता को इतना भी विवश मत करो ....कि ! वह तुम्हारी अमर्यादित कुकृत्यों के कारण अपनी मर्यादा तोड़ने पर विवश हो जाएं !! और तब.... तब सिवाय सिर धुनने के कुछ नहीं बचेगा |
हम जानते हैं कि हम यदि विकास चाहेंगे तो इन पुण्य जीवन दायिनी माँ जैसी नदियों और प्राकृतिक संपदाओं
को हानि पहुंचनी ही है ' और यदि इन्हें हानि से बचाते है तो हमारा विकास कार्य बहुत हद तक अवरुद्ध होता है |
लेकिन फिर भी जो हमने प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से देखा और महसूस किया है ! उससे तो माँ गंगा का कोई भी विषय चिंता का है ही नहीं !!
कारण..... कि जैसे भगवान श्री कृष्ण बांसुरी अवश्य बजाते हैं अपने भक्तों से प्रेम भी बहुत करते हैं परंतु यदि किसी ने उनके जीवन दायिनी बांसुरी की धुन को अथवा प्रेम को अनाचार से परखने की भूल की..... तो फिर.... वही हाथ सुदर्शन चक्र भी उठाने में संकोच नहीं करते !?
अतः किसी को कहने ( समझाने ) कि आवश्यकता ही नहीं कि.. माँ गंगा को ना तो किसी स्वछता अभियान की आवश्यकता है और ना ही किसी विशेष दिवस की..... बस हमें मां गंगा की कदर करने और स्वयं मर्यादा में रहने की आवश्यकता है |
वरना वह दिन दूर नहीं जब माँ अपने ऊपर हो रहे अत्याचार से कृद्ध हो अपना रौद्र रुप धारण कर हम सब अनाचारीयों , गंदगी फैलाने वालों , उन्हें प्रदुषित करने वालों को........ ' जिस तरह हमारी हर गंदी कुकृत्यों को अपने में समाहित कर लेतीं है उसी तरह हमें भी जड़ - मूल सहित अपने में समाहित करेंगीं और तब हम ( शेष बचे हुए लोग ) खुश हो कर ये कह कर दिखाएं कि " चलो .. माँ है ! सब कुछ अपने बच्चों का.... बच्चों सहित अपने में समाहित कर लिया!!!
क्योंकि हम उस देश के वासी है जिस देश में गंगा बहती है |
हर हर गंगे
संतोष शर्मा शान
हाथरस ( उ. प्र. )
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