"सुनो भाई,आज के लेख में व्यंग्य नहीं है।"
"चुप कर जा,ईश्वर देखा है"
"नहीं "
"महसूस किया है !"
"हां"
"कैसे?"
"सबके कहने पर"
",सही है, जैसे- गुनीजनो ने ईश्वर को खोज निकाला और तुमने भी महसूस किया। बस तुम्हें इसे भी महसूस करना है। यदि नहीं करोगे तो मूर्ख साबित हो जाओगे।"
"भाई,ईश्वर का इसका क्या लेना देना?"
देना लेना तो है जो दोगे वही लोगे (मतलब तारीफ करोगे तो मिलेगी )
अरे बावरे, जैसे ईश्वर दिखाने से दिखता है वैसे ही व्यंग्य भी दूसरों के बताने से महसूस होने लगता है। महान विभूतियों ने बकवास लेख में व्यंग्य खोज निकाला है, तुम भी उस व्यंग्य को महसूस करो।"
"हम्म"
"हम्म नहीं...चलो...एक बार फिर से पढ़ कर बताओ?
"अरे हां!....... है!"
"क्या?"
"व्यंग्य"
"लो हो गये ना..... तुम भी..... महान।
तथास्तु।।"
मीना अरोड़ा
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