मुद्दे -डॉ.ज्योति मिश्रा


श्मशान की धूंधूं के बीच
अखबार पटे  रहे
बलात्कार
हत्या और
गुरबत की
ताजा- तरीन खबरों से
 राजा और युवराज
चाय की चुस्कियों के साथ
पीते रहे
और महसूस करते रहे
अपने आपको
तरोताजा|

हर शख्स
अपनी जुराब पर
पर्फ्यूम स्प्रेकर
बदबू पर
डालता रहा
परदा|

मुद्दे से
ध्यान भटकाने की
 दलील पर
अनवरत
सर-संधान जारी  रहा
चहुँ ओर |

एक बात
समझ से परे रही
क्या मृत्यु भी
कोई मुद्दा हो सकती है?
इन गलबजवन को
कौन समझाए?
मुद्दा तो
जीवन और मृत्यु
दो छोरों के बीच अटका
पतंग-सा फड़फड़ा रहा है|

मुद्दे तो होते हैं शुरू
जीवन की
सुगबुगाहट के साथ ही
रोटी और बेटी के
जो मृत्यु पर
अनंत में विलीन हो जाते हैं
अनुत्तरित|

इस समय
सांझा चूल्हा धधक रहा है
हवाएं हैं अनुकूल
ईंधन की भी नहीं है
मारामारी
हथपुइए दक्ष कलाकारों को आदेश दो
जितनी ज्यादा से ज्यादा
सेंक सके
सेंक लें रोटियां |

डॉ.ज्योति मिश्रा

 


 


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6 टिप्पणियाँ

anubhooti ने कहा…
Very nice ..Very well written and expressed..
Unknown ने कहा…
बहुत सुंदर यथार्थ कटु सत्य

Unknown ने कहा…
बहुत सुंदर
AalochakSamalochak ने कहा…
शानदार ओर ज्वलंत
AalochakSamalochak ने कहा…
शानदार और ज्वलंत
Unknown ने कहा…
बहुत सुंदर