पता था मुझे..,
तुम लौट कर नही आयेगा
बुलंदी को छूते ही तुम
हमें भूल जायेगा..!!
ये कोई नई बात नही था
जो चला गया दूर
छोड़ कर मुझको
पता था वो लौट कर
न आएगा..!!
मुझे याद है वो
श्रावण की महीना
आधी रात में जब
तुम आया था
मेरा दरवाजे पर
तुम भीगा हुआ था ।
आंखो में आंसु
होंठ तुम्हारा कंपा कंपा था..।
सच तब मुझे पता चला
जब तुम आने का
कारण बताया था...,।
मेरा मन निर्शब्द निर्वाक था
जब तुम कहा सारे अपनों को
श्मशान में विदा कर आया।
तुम अपना घर की दरवाजा को
छू भी ना पाया था..,
शुना घर से तुम मेरा घर
रोते हुए लौट आया था..।
भूली नहीं में
तुम जी भर कर
अपना दर्द जाहिर किया था..।
सीने पर अपना सिर रख कर
खूब आंसू बहाता था..।।
अपनों को खोने का दर्द
क्या होता है ....,
पहले से मुझे था पता,
अब तुम्हे पता चला है..।
पल पल तुम्हारा
हर खुशियों की
मैं ख्याल रखा था..,
तुम्हारा हर गम पर बात मेरा मलहम की काम किया
करता था।
जब जाने लगे तुम परदेश
संभाल लिया था मैं
खुद ही खुद को..,
तुम्हारा लौट आने की आशा में..।
पर रो पड़ी थी उस वक्त मैं
जब तुम खत भेजना
बंद किया था..,
बस बिस्तर ही साथी
बना था मेरा...
तुम्हारा ही इंतजार में.।
भुला दिया जब तुम मुझ को
टूट कर मैं बिखर गया था..,
ख्वाब जो था..,
सुहाग में तुम्हारा..
वो सारे कफन में..
छिपा लिया था..।
बाकी जो था यादें तुम्हारा.,
आत्मा ने उसे काया के संग
आग के हवाले कर दिया था..।।
Adv. Sunita Sunu
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