कमबख्त दिल ना होता-ममता तिवारी

 कविता


कमबख्त ये दिल ना होता तो दरारों का मलाल ना होता 
 कांच सा बिखरना,बटोरना,चुभना,भी महसूस नहीं होता


दिल के पास कुछ खास लोग,खास एहसास ही रहते हैं
मजबूत रिश्ते भी गलतफहमी से कभी दूर चले जाते हैं

दिल की समस्त भावनाओं का सृजन,जनक है यह दिल
जिंदा इंसान में धड़कता मचलता बहकता है यह दिल

दिल की जुबान,भाषा नहीं,मौन,मूक बातें करता है दिल
अपनों के अपनेपन में जीता मरता ,खुश रहता है दिल

दिल से प्रेम करना,प्रेम बांटना,सबसे बड़ा है प्रेमउपहार 
दिल से किसी का प्रेम पाना स्वयं के लिए  मान सम्मान


पेड़ के पत्तों जैसा बिछड़ा तो फिर बिखर जाता है दिल
प्रकृति जैसा हरियाली बिन रुखासूखा हो जाता है दिल

दुनिया रूठे,जग छूटे,दिल ना टूटे,हरदम साथ साथ रहैं
दिल के लिए पूरी दुनिया हम,प्रेमप्रीत से नवस्वप्न रचें

स्थाई खुशी के लिए विश्वास से दिल से असीम प्रेम करो
कमबख्त दिल है बच्चा,मासूम,निश्छल अपार प्यार करो 

ममता तिवारी इंदौर
स्वरचित कविता 


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