जाने कहॉं गये वो दिन - उषा

 

 यह घटना1988 की है। मैं गाँव अपने ससुराल में थी। मेरे दादा ससुर जी को गो सेवा का बड़ा शौक था। पूरा परिवार बड़े प्रेम से गाय की देखभाल करता था। गाय के नाम थें जमुना, कावेरी, गंगा और बछड़ों के नाम कपिल, भरत, लक्ष्मी। दादाजी रोज सवेरे गाय को चरवाहे के पास छोड़ने जाते।

  एक शाम कावेरी नहीं लौटी। घर पर कोहराम मच गया। कावेरी को ढूंढने के लिए सभी ने अपना-अपना प्रयास किया। पापाजी दादाजी खाली हाथ लौटे, कावेरी नहीं मिली। सभी मेरे पति देव के आने का इंतजार कर रहे थे। स्कूटर आकर रुका। पतिदेव का उदास चेहरा देख, पापा जी ने पूछा, “कावेरी नहीं मिलीउत्तर के बदले उनकी आंखें डबडबा आयी, गला रूँध गया। सभी की बेचैनी और प्रश्न की बौछार बढ़ गई। वे बुझी आवाज से बोलेकावेरी परलोक चली गई। एक खेत में जाकर उसने गर्मी की ज्वार खा ली। पानी नहीं मिलने से उसका पेट फूल गया। जहर बन जाने से उसकी मृत्यु हो गई।हे राम! राम-राम और दादाजी रोने लगे। घर के सभी सदस्य दुखी थें। आस-पास मोहल्ले तक भी समाचार पहुँच गए। घर के बाहर भीड़ इकट्ठी हो गई। सभी अपने-अपने ढंग से दुख और संवेदना प्रकट कर रहे थें। उस दिन घर में किसी ने ठीक से खाना भी नहीं खाया।

  कावेरी को गए चार दिन बीत गए। चौथे दिन एक बूढ़ी अम्मा ने आकर दरवाजे पर आवाज लगायी, “सेठजी सेठजी, “कहती हुई चौक तक गई। दादाजी ने हाथ जोड़कर अभिवादन किया, “जय श्रीकृष्ण।अम्मा शिकायत करने लगी, “मैंने तुम्हें ऐसा क्या कह दिया? क्या मैंने तुम्हारी कावेरी को दुत्कारा जो तुमने कावेरी को मेरे घर नहीं आने दिया। मैं रोज उसकी रोटी बनाती हूँ। दादाजी रूँधी आवाज से बोले, “भाभी ऐसी कोई बात नहीं है। कावेरी तो चली गई। हमें छोड़कर परलोक चली गई।

 अम्मा जो कि लड़ने आयी थी, यह सुनकर स्तब्ध रह गई। हे राम! राम-राम बोलती हुई पास रखी कुर्सी पर बैठ गई। रो-रो कर कावेरी के गुणों का बखान करने लगी और दादाजी को सांत्वना देने लगी।शायद हमारे भाग्य में उसकी इतनी ही सेवा लिखी थी। मैंने कौतुहल वश उन अम्मा के बारे में अपनी सासू माँ से पूछा। मम्मी जी ने बताया कि, “चरवाहे के पास गाय को छोड़ने जाते हैं तब रास्ते में इनका घर आता है। ये कावेरी को रोटी खिलाती थी और दुलारती। कावेरी और उनके बीच पिछले जन्म का कोई संबंध होगा जो कावेरी अम्मा के बाहर मिलने परमाँ-माँकरती हुई पोल में घुस जाती और चौक में खड़ी होकर इंतजार करती। अम्मा उसे रोटी खिलाती दुलारती तब वह मुड़कर वापस बाहर जाती।

 अरे वाह! बड़े आश्चर्य की बात है। मैने ऐसा अनोखा प्रेम पहली बार देखा। समय बीत गया परंतु पूरा घटनाक्रम मेरे मानस पटल पर एक अमिट छाप छोड़ गया। आज के इस भौतिक प्रगति के समय में ऐसा निश्छल प्रेम और लोग जाने कहां गए?

श्रीमती उषा सोमानी

 निदान डेंटल केयर 

 18,सुभाष नगर कीर खेडा रोड

 चित्तौड़गढ़ (राज.)

 पिन312001

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