मुग्धा रूप रंग में साक्षात सौंदर्य की देवी प्रतीत होती थी। गौर वर्ण, श्यामल केश,सुराही जैसी गर्दन और चाल ऐसी लुभावनी की हिरणी भी शर्मा जाए। पाक कला में दक्ष मुग्धा ,पढ़ाई में सामान्य रही थी। उसकी माँ सावित्री देवी ने उसे बड़ी ही सादगी से पाला था। कभी मुग्धा आधुनिक परिधान पहनने के लिए कहती तो सावित्री देवी तुरंत टोक देतीं "मुग्धा बाबुल के घर लड़की सादा ही रहतीं हैं, अपने घर जाकर चाहे जितना फैशन करना"
मुग्धा के कॉलेज से लड़कियाँ एजुकेशनल टूर पर जा रहीं थीं उसने भी माँ से अपने जाने के विषय में पूछा तो माँ का जवाब आया "मुग्धा मुझे विवाह से पूर्व लड़की का यूँ घूमना -फिरना पसंद नहीं, जितना भारत भ्रमण करना हो अपने घर जाकर करना"
मुग्धा उदास होकर स्वयं से पूछती "क्या यह मेरा घर नहीं है?"
मुग्धा को कॉलेज के एक फंक्शन में गायत्री देवी जो कॉलेज की ट्रस्टी थीं, ने देख लिया और अपने बेटे मोहित के लिए पसंद कर लिया। विवाह का प्रस्ताव मुग्धा के घर पहुंचा तो मुग्धा की माँ अत्यंत प्रसन्न हुईं। आखिर इतना धनाढ्य परिवार जो मिला था।
आखिरकार मुग्धा का विवाह मोहित से हो गया।
सुहाग कक्ष में ही मुग्धा के समक्ष मोहित की सच्चाई सामने आ गयी। वह मदिरापान ..अफ़ीम.. चरस आदि का सेवन करता था। और फिर पशुवत आचरण करता था।
मुग्धा के लिए उसके साथ जीवन निर्वाह करना किसी चुनौती से कम न था।
1 माह बाद मुग्धा ने मोहित के वहशीपन की निशानियाँ अपनी सासू माँ को दिखाई तो उन्होंने तपाक से कह दिया "देखो मुग्धा मैंने मोहित को बड़े लाड़-प्यार से पाला है, उसके लिए बहुत अमीर घरानों से रिश्ते आये किंतु मोहित ने तुम्हें कॉलेज के सांस्कृतिक कार्यक्रम में देखा तो तुम पर हृदय हार बैठा। मैंने उसे बहुत समझाया कि तुम्हारा लो स्टेटस हमारे स्टैण्डर्ड से मैच नहीं करता, पर उसकी मति मारी गयी। और आज तुम मेरे मोहित पर ही उंगलियाँ उठा रही हो। तुम क्या जानो ये हाई सोसायटी के शौक हैं। यदि तुम हमारे साथ एडजस्ट नहीं कर सकतीं तो अपने घर चली जाओ "
सुनकर मुग्धा के हृदय का दर्पण चूर -चूर हो गया। एक वाक्य जो उसके कानों में चुभने लगा वह था "अपने घर चली जाओ"
क्या यही इस समस्या का समाधान है?
मायके में बेटियों को यह कहकर बड़ा किया जाता है कि अपने घर जाकर अपने सारे अरमान पूरे करना... और फिर ससुराल से यह कहकर दुत्कारा जाता है कि "अपने घर चली जाओ".. आखिर एक लड़की का घर कौन सा होता है?
मायका,जहाँ उसे ससुराल की अमानत समझकर बड़ा किया जाता है...या ससुराल जहाँ उसे हर क्षण परायेपन का एहसास कराया जाता है।
प्रीति चौधरी "मनोरमा"
जनपद बुलन्दशहर
उत्तरप्रदेश
मौलिक एवं अप्रकाशित।
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