कम्बख़्त दिल न होता-प्रीति



कबख़्त दिल न होता तो न लगता कोई प्यारा
नहीं होता साथ-जीने मरने का इशारा
अहद-ए-वफ़ा और कसमें न होतीं,
तोड़नी प्रेमियों को फिर रस्में न होतीं
न होता वो आँखों- आँखों में सनम से इक़रार,
पहली मोहब्बत का  वो पहला इज़हार।

कम्बख़्त दिल न होता तो न होते ये आँसू,
तन्हा-तन्हा सी होती महफ़िल हर सू।
न होता दुनिया में प्यार का नामोनिशान
दिल टूटने पर न होता दिमाग़ परेशान
न कोई शख्स फिर इश्क़ में बनता शायर,
न जलते धू-धू करके मासूम दिल के वायर।

कम्बख़्त दिल न होता तो दर्द भी न होता
न किसी की याद में मन जार-जार रोता,
ज़िन्दगी को प्यार का एहसास नहीं होता
कोई किसी के लिए ख़ास नहीं होता
जीवन में चाहतों के फिर ये रंग नहीं होते,
उम्मीदों के जुगनू अँधेरे में यूँ संग नहीं होते।

प्रीति चौधरी "मनोरमा"
जनपद बुलन्दशहर
उत्तरप्रदेश



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