अमरपुर नामक स्थान बाॅंका (बिहार) जिले में अवस्थित है। यह भागलपुर, अकबरनगर (भागलपुर सुल्तानगंज के बीच ) और शाहकुण्ड से दक्षिण, बांका से उत्तर, रजौन से पश्चिम और तारापुर, बेलहर, शंभूगंज से पूरब में! साथ ही भागलपुर बाॅंका के बीचो बीच है। यहाँ थाना, डाकघर, बैंक,अस्पताल,ब्लॉक, अंचल,पुस्तकालय,विद्यालय, महाविद्यालय, देवालय, बस स्टैंड, हाट-बाजार आदि है। ईख से गुड़ बनाने की छोटी- बड़ी मिलें भी है। पहले तो यहां चीनी भी बनती थी। आवागमन के लिए सड़कें बनी हुई है और उन पर सरकारी एवं प्राईवेट बसों के साथ साथ टेक्सी-कार, टेम्पो, ट्रेकर,ऑटो-रिक्सा,बैलगाड़ी आदि प्रायः सभी प्रकार की सवारी गाड़ियाँ चलती है।लेकिन रेल लाईन के अभाव में यातायात में असुविधा ही रहती है! स्थान छोटा लेकिन मनोरम है!जलवायु अच्छी है।खेती अच्छी होती है। व्यवसाय भी चलता है! यहाँ के लोग साधारणतः सुखी और सम्पन्न हैं!शिक्षा, साहित्य, कला और राजनीति में लोगों की अच्छी अभिरुचि है।अपने क्षेत्र का प्रमुख केन्द्र होने के कारण दिन व दिन इस स्थान का विकास हो रहा है ।गुड़ का व्यवसाय यहां की विशेषता है।
अमरपुर कब बसा, कहना कठिन है। लेकिन 'अमरपुर' नाम से संकेत मिलता है कि अमर नामक किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति के नाम पर इसका यह नाम पड़ा होगा।गांवों के 'पुर' अथवा 'नगर' युक्त नाम प्राय: किसी देवता, किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति अथवा किसी महत्वपूर्ण घटना के नाम पर होते हैं।अपवाद भी है,लेकिन बहुत कम। हो सकता है 'अमरपुर' नाम से पूर्व इस गांव का कोई अन्य नाम रहा हो!लेकिन यदि अमरपुर ही इस गांव का पहला नाम है तो, अधिक संभावना है कि खड़गपुर ( मुंगेर जिलान्तर्गत ) के राजा देव वर्म ने अपने पुत्र अमर वर्म के नाम पर अथवा अमर वर्म ने स्वयं अपने ही नाम पर इस अमरपुर को बसाया। इससे यह भी संकेत मिलता है कि अमरपुर का क्षेत्र उस समय खड़गपुर राज्य के अन्तर्गत था।
फ्राँसिस-बुकनन नामक एक अंग्रेज ईसवी सन् 1811 में भ्रमण के सिलसिले में अमरपुर पहुंचा था!उसने अपने भागलपुर जिले के वर्णन में लिखा है कि उस समय अमरपुर में लगभग दो सो घर थे और यह स्थान रतनगंज थाने के अन्तंगत था!इससे स्पष्ट है कि अमरपुर में बहुत पहले थाना नहीं था। बुकनन ने रतनगंज और अमरपुर के बीच एक मील से अधिक दूर तक विस्तृत एक अच्छे बड़े किले के बारे में भी लिखा है! किले वाले स्थान का नाम बुकनन ने डुमरिया लिखा है। लेकिन यह वास्तव में वर्तमान डुमरामा है, जो अमरपुर से दो किलोमीटर उत्तर में अवस्थित है!'गदाधर प्रसाद अम्बष्ट' रचित बिहार दर्पण में इस किले वाले स्थान का नाम डुमराॅंव लिखा हुआ है, और कहा गया है,कि इस एक मील या इससे भी कुछ अधिक घरे वाले किले के अन्दर जाने के लिए सात दरवाजे थे! साथ-साथ इसमें यह भी उल्लेख हुआ है कि यह देवी नामक राजा का था और इसके अन्दर यहां का अन्तिम राजा मुसलमानों से लड़ता हुआ मारा गया था!
जर्नल ऑफ दि एशियाटिक सोसाईटी ऑफ बंगाल, ई० सन् 1870 पृष्ठ 232 के अनुसार बनहरा में राजा देव का एक गढ़ ( किला ) था। बुकनन ने खड़गपुर के राजा देव वर्म, उसके पुत्र अमर वर्म और अमर के पुत्र तिलक की चर्चा की है। इस देव वर्म को अकबर के शासनकाल में या उससे कुछ पूर्व राजपूतों ने खड़़गपुर से निकाल दिया था। यह देव वर्म एसियाटिक सोसाईटी जर्नल के राजा देव और बिहार दर्पण के राजा देवी से भिन्न नहीं प्रतीत होता है। साथ-साथ रतनगंज और अमरपुर के बीच अवस्थित बुकनन का डुमरिया वाला बड़ा किला, बिहार दर्पण का सात दरवाजे और बड़े लम्बे घेरे वाला डुमराॅंव का किला तथा एसियाटिक सोसाईटी बंगाल वाला बनहरा का गढ़, सभी एक ही है। इनमें यथार्थ में भिन्नता नहीं है। डुमरिया और डुमराँव तो वर्तमान डुमरामा ही है, और बनहरा अमरपुर से विल्कुल सटा हुआ रहने के कारण अमरपुर ही है । चूॅंकि किले का विस्तार डुमरामा और बनहरा अमरपुर के बीच में था, अतः किसी ने इसे डुमरामा का मान लिया ।(उच्चारण भेद डुमरिया या डुमराँव) और किसी ने वनहारा का मान लिया। अमरपुर, डुमरामा, बनहरा,भरको आदि से घिरे क्षेत्र में आज भी अनेक पुराने पोखर, कुॅआ,गढ़्ढ़ों में भवन आदि के अवशेष मिलते हैं!हाल ही में भदरिया में मिले अवशेष तो संपूर्ण सबूत के साथ खड़ा नजर आता! भदरिया में मिले अवशेष से स्पष्ट हो जाता है कि इस क्षेत्र में पहले कोई वैभवशाली राजा राज्य करता था!
दूसरी तरफ यह भी मना जा सकता है कि भागलपुर से अंग्रेज शिकार खेलने रजौन,शाहकुण्ड, अमरपुरा आदि स्थालों की और जाया करता होगा! आज भी इन क्षेत्र से कुछ ही दूर घना जंगल देखने को मिली जाता है!और कभी कदाल कुछ जंगली जानवर भी! वैसे भी 'वनहरा' शब्द भी हरे-भरे वन या जंगल का घोतक है! डुमर और आम के वृक्षों के नाम पर बना 'डुमरामा' शब्द भी इस क्षेत्र में इन वृक्षों की बहुलता का बोधक है!शिकार के समय ठहरने के लिए अंग्रेज अमरपुर - वनहरा के आप पास ठहरता होगा! वनहरा के पास गढ़नुमा एक भवन हुआ करता था,जिसका कुछ अवशेष आज भी देखने को मिल जाता है! पास में ही एक पोखर है, जो दिग्घी पोखर के नाम से विख्यात है!उस समय अमरपुर जंगली क्षेत्र होने के कारण शिकार का आकर्षण केंद्र रहा होगा!अमरपुर से चार-पाँच किलोमीटर दक्षिण-पूर्व की ओर जेठौर की पहाड़ी है। यह पहाड़ी इस क्षेत्र की सबसे बड़ी पहाड़ी है। इस पहाड़ी के नीचे एक शिव मन्दिर है, जहाँ जेठोरनाथ शिवलिंग की पूजा होती है! और शिवरात्रि में मेला लगता है। अमरपुर से ही लगभग छः किलोमीटर दक्षिण झरना पहाड़ी हैं, जहाँ ठंडे जल का एक झरना है। प्रतिवर्ष मकर संक्रान्ति के अवसर पर यहाँ भी मेला लगता है। इसी पहाड़ी के आसपास उजली मिट्टी और अवरख की खाने हैं। समुखिया नामक गाँव इस पहाड़ी से थोड़ी ही दूर दक्षिण में है। समुखिया अपने काली मन्दिर के लिए भी विख्यात है! अमरपुर के भलुहार में नीलकोठी के अवशेष मिले हैं। जिससे पता चलता है कि अंग्रेजी शासनकाल में बिहार के अन्य क्षेत्रों की तरह अमरपुर क्षेत्र में भी नील की खेती होती थी, और नील तैयार होता था!
राष्ट्रीय आन्दोलन में अमरपुर का भी बड़ा योगदान रहा है! ई० सन् 1942 की क्रांति के समय अमरपुर क्रांति का एक प्रमुख केन्द्र था! इसमें महेंद्र गोप, राधे श्याम पाठक, पशुपति सिंह, शीतल भगत, भगवान साह, महावीर भगत आदि ने अमरपुर क्षेत्र से राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लिया था। अमरपुर क्षेत्र कृषि प्रधान है। कहाँ जाता है कि अमरपुर के पास भदरिया गाँव विश्व विख्यात सुगंधित कतरनी चावल का नैहिर हुआ करता है!
आधुनिक विकास का प्रकाश यहाँ भी पहुंचा है। बिजली,सिनेमा, सिचाई, नहर एवं नलकूप, ट्रॅक्टर, रासायनिक उर्वरक,गैस, समाचार-पत्र, शिक्षालय, पुस्तकालय, औषधालय, सड़क आदि अनेक प्रकार के आधुनिक विकास के साधन यहाँ उपलब्ध हैं!साहित्यक संगोष्ठियों/ गोष्ठियों का आयोजन अमरपुर में हमेशा होते रहते है। हिन्दी और अंगिका की कई रचनायें और रचनाकार इस क्षेत्र में अपनी भुमिका निभा रहे हैं। पहले नाटकों के मंचन की ओर यहां के लोगों का भी अभिरूचि हुआ करता था! भजन, कीर्तन और लोकगीतों का इस क्षेत्र में अच्छा प्रचार है। लगभग सभी लोगों की मातृभाषा अंगिका है।
अमरपुर में मंगलवार और शुक्रवार को हाट लगती है ।मवेशियों को छोड़ यहाँ अन्य आवश्यक सामान प्रायः मिल जाते हैं। मवेशियों की खरीद बिक्री के लिए भरको और पवई हाट विख्यात है। अमरपुर में व्यवसायी वर्ग के लोगों की अच्छी संख्या है। गुड़ के व्यवसायी का यह एक प्रमुख केन्द्र है। संभवतः व्यवसायियों की बहुलता के कारण ही अमरपुर के निकट पूर्व की ओर का एक गाँव बनियांचक कहलाया। भदरिया पुरातत्विक स्थल ने अमरपुर क्षेत्र के इतिहास को नव-जीवन प्रदान किया और अमरपुर को सचमुच अमर बना दिया।
डा0 आलोक कुमार
बॉंका, बिहार
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