थोड़ा रुकना चाहती हूँ मैं
एक शून्य की तरह
हर उस बात से जो होती रहती है
हर एक ख्वाहिश से जो उठती रहती है
हर उस निराशा से जो तंग करती है
हर एक उम्मीद से जो बढ़ती रहती है
कुछ शांति, कुछ विराम, कुछ पल,
बिना आशा-निराशा के,
बिना कुछ होने ना होने के,
बिना बात के, बिना गति के,
थोड़ा रुकना चाहती हूँ
अपनी भावनाओं और अपने एहसास के बीच
कुछ देर रहना चाहती हूँ
थोड़ा रुकना चाहती हूँ
डॉक्टर रचना ग्रोवर
प्रोफेसर बी. एम. यूनिवर्सिटी
रोहतक
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