बजाते कृष्ण हैं मुरली मगन गोकुल की गलियों में।
मधुर सुन तान वंशी की मची हलचल है" सखियों में।
चुराया चित्त राधा का मदन मोहन की मुरली ने।
प्रणय रस पी रही राधा कान्हा की डूब अँखियों में।
दुआ माँगू यही तुझसे हरो कान्हा मेरी बाधा।
बनूं मीरा सी भक्तिन मैं तुझी को प्राण में साधा।
न मेरी चाहत रुक्मणि-सी नहीं है चाह महलों की।
बनूं मैं प्रेम में रँगकर दिवानी मैं तेरी राधा ।
अधर मुरली धरी श्यामा गले वैजंती माला है ।
सुधा बसोर
गाजियाबाद
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