साहस और निष्ठा- सुधा बसोर

सुरभि एक साधारण परिवार की सरल व्यवहार वाली सीधी साधी लड़की है।। वह दो बहनें हैं।सुरभि बड़ी और संगीता उसकी छोटी बहन है। पिता दीनदयाल जी सरकारी दफ्तर में हैड क्लर्क के पद पर कार्यरत हैं।   मां रमा देवी घर में रहकर ही अपने घर परिवार की देखभाल करती है। माता पिता दोनों ही अपनी दोनों बेटियों को अच्छी से अच्छी शिक्षा देकर  उन्हें ऊंचे  बड़े बड़े पदों पर देखना चाहते थे।  उनको आर्थिक रुप से स्वावलंबी बनाना चाहते थे। सुरभि सी.ए.और संगीता एम.बी.ए.कर रही थी।

        हालांकि समय समय पर सुरभि के पापा को घर चलाने और दोनों बहनों की फीस केलिए काफ़ी परेशानी होतीथी। पर फिर भी जैसे तैसे सब चल ही रहा था।  समय बीतता गया और दोनों बहनों की पढ़ाई  समाप्त होने ही वाली थी।सब बहुत खुश थे । सुरभि भी यह सोचकर कि अब उसके पापा को आर्थिक तंगी नहीं होने देगी वह अच्छी से अच्छी नौकरी करेगी और बाद में अपनी सी.ए.फर्म खोलेगी, मन ही मन फूली न समाती। पर वक्त को तो कुछ और ही मंजूर था। एक दिन अचानक दीनदयाल जी रात का भोजन करते करते बेहोश होकर गिर पड़े । घर में रोना चिल्लाना शुरू हो गया।शोर सुनकर पड़ौसी भी पहुंच गए और उन्हीं की मदद से दीनदयाल जी को पास के सरकारी अस्पताल में भर्ती किया गया।पता चला ब्रेन स्ट्रोक के कारण ऐसा हुआ। तीन दिन के बाद दीनदयाल जी की अस्पताल में ही मृत्यु हो जाती है। अचानक से परिवार पर दुख का पहाड़ टूट पड़ा और सुरभि के ऊपर जिम्मेदारियों का बोझ आ पड़ा। सुरभि मां और बहन की जिम्मेदारी संभालने के लिए अपने स्वर्णिम भविष्य के सपनों को भूलने की कोशिश करती है और न चाहते हुए भी जल्दी पैसा कमाने  के लिए बहुत सी कंपनियों में नौकरी के लिए आवेदन करती है। और अंततः 

सुरभि की नियुक्ति एक प्राइवेट कंपनी में क्लर्क के पद पर हो जाती है। वह एक बहुत ही सरल,सहज, संस्कारी और मेहनती लड़की थी। आफिस में सभी उच्च अधिकारी उसके कार्य और व्यवहार से बहुत ही खुश थे। उसने अपनी कर्मनिष्ठता और योग्यता के बल पर कुछ ही सालों में पदोन्नति पाते हुए उच्च पद पर आसीन हो गई। आफिस की मीटिंग में उसकी निष्ठा और कर्मठता की हमेशा ही प्रशंसा होती थी।  जिसे सुन सुन कर और उसकी पदोन्नति से कंपनी के  पुराने सहकर्मी, जो कामचोर और चापलूसी में विश्वास करते थे, उससे ईर्ष्या करने लगे। उसके लिए बुरी भली बातें, व्यंग्य और कभी कभी तो तरह तरह के षड्यंत्र करके उसको बहुत ही परेशान करते और उसे उच्च अधिकारियों की नजर में गिराने की कोशिश भी करते। शुरू में तो उसे ऐसी हरकतें बहुत ही परेशान करतीं थीं। पर उसके पिता ने कूट कूट कर हिम्मत और साहस जो भरा था, वह उसे जिंदगी में कभी हारने नहीं देता था। परंतु जब वह कभी  परेशान हो जाती तो  घर आकर अपनी मां और बहन से भी उनके विषय में बात करती। मां उसको समझाती बुरे का बदला बुराई से नहीं देते ।तुम तो समझदार हो प्रेम से शांति पूर्वक समझाओ।  शुरु में तो उसे बहुत ही बुरा लगा उसने उन्हें समझाने की कोशिश भी की परन्तु बदले में वही उल्टी सीधी बकवास सुनकर सुरभि को समझ आ गया कि उनसे कुछ कहना मतलब कीचड़ में पत्थर मारने जैसा और अपना समय नष्ट करना है। अब वह उनकी हरकतों को अनदेखा कर देती और मन लगाकर अपना काम करती रही। और आज वह अपनी निष्ठा और कर्मठता के बल पर पदोन्नति के आधार पर कंपनी की मैनेजर बन चुकी  है।जबकि अन्य सभी चापलूस और कामचोर प्रवृत्ति के सहकर्मी उसके जूनियर हैं और सुरभि के आदेशों का पालन करते हैं। उनकी बोस होने के बावजूद भी सुरभि सभी के साथ बहुत ही अच्छा व्यवहार करती है। मन ही मन इन सब कामचोरों को अपने पद और सुरभि के प्रति अतीत में किए गए दुर्व्यवहार पर मन ही मन बहुत ही शर्मिंदगी होती थी। उन्हे  सुरभि की अच्छाइयों के सामने झुकते हुए सुरभि से क्षमा मांगते हैं। सुरभि बड़े ही सरलता और सहजता से उन्हें समझाती है कि मनुष्य को किसी को झुकाने की नहीं बल्कि अपने कार्य को मेहनत और निष्ठापूर्वक समय पर करने की आवश्यकता होती है। प्रगति की राह अपने आप बनती चली जाती है।

सफलता पूर्वक साहस और निष्ठा से अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों को पूरा करके आज सुरभि अपना खुशहाल वैवाहिक जीवन व्यतीत कर रही है। उसका पति योगेश भी सरकारी बैंक में प्रबंधक के पद पर कार्यरत है।

                   सुधा बसोर, गाजियाबाद से



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