राखी -सत्येंद्र पाण्डेय 'शिल्प'

हर साल की तरह राखी की तैयारियां हर कोई अपने अपने ढंग से कर रह था। कोई नये कपड़े, गहने श्रृंगार का सामान सब अपने अपने को तैयार करने मे लगे हुए थे। लेकिन् उसी गांव मे एक् परिवार ऐसा भी था जो एकदम मायूस उदास बैठा था। हो भी क्यों ना क्योंकि वो औरो के तरह पैसे वाले नहीं थे।वे किसी तरह से अपना पालन पोषण कर रहे थे वे दैनिक मजदूर थे।

मजदुरी से जो भी पैसे आते थे उससे उनका परिवार पलता था। आज उनके दोनों बच्चे बहुत उदास थे सबको नए कपड़े मिल रहे थे वो बेचारे मन मार के बैठे थे। उनकी माँ ने उनका दिलासा दिलाया कि शाम को उनके पिता घर आएंगे तो उनको लेकर बाजार जाएंगे तब  नये कपड़े राखीऔर मिठाई  लेके

आएंगे, बच्चे शाम का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे कि शाम को उनके पिता के आने के बाद उन्हें बाजार जाना है। शाम हो चुकी थी उनके पिता नहीं आए बच्चे इंतजार करके सो गए उनके पिता बहुत देर से आए। थके हारे निराश बहुत दुःखी मन से घर आए घर आते ही उन्होंने बच्चों के बारे मे पूछा उनकी पत्नी बोली वो बिना खाए ही सो गए। वो बहुत दुखी हुआ व खुद को कोसने लगा उसके पत्नी ने पैसों के बारे मे पूछा तो रोज़ की तरह ही जबाब आया कि आज भी पैसों का इंतजाम नहीं हुआ।

दोनों भगवान का नाम लेकर सो गए कि सुबह कोई चमत्कार हो जाए और उनके बच्चों को भी थोड़ी खुशी मिल जाए। सुबह बच्चे बड़े उत्साह मे पूछने लगे लेकिन वही जबाब कि आज मिल जाएगा। उनका पिता उनको बोल के चला गया आज वो काम पे गया उसे बिना मांगे पैसे मिल गए। वो वहां से सीधे बाजार गया नए कपड़े राखी और मिठाई लेकर घर गया। नए कपड़े पाकर उसके बच्चों के चेहरे पे जो खुशी थी वो अद्भुत थी।सब बहुत खुश थे उन्हीने हंसी खुशी त्यौहार का आनंद लिया


सत्येंद्र पाण्डेय 'शिल्प'

गोंडा उत्तरप्रदेश



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