इंसानियत-सत्येंद्र पाण्डेय 'शिल्प'



आज के समय में जो कहीं भी नहीं देखने को मिलती वह चीज है इंसानियत लोगों को सिर्फ और सिर्फ अपने काम से मतलब है इंसानियत नाम की कोई भी चीज बची नहीं है हर कोई अपना स्वार्थ साधने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है लेकिन इसके विपरीत एक छोटी सी घटना है जो की ट्रेन की है बात कुछ 

समय पहले की है एक ट्रेन जो कि दिल्ली से निकलकर और कोटा राजस्थान के लिए जा रही थी ट्रेन के एसी कोच में एक सज्जन अपने दो बैग् के साथ बैठे ट्रेन में बहुत सारे यात्री थे ट्रेन अपने हिसाब से चलती रही थी उन्हें ज्यादा दूर नहीं जाना था वो बहुत सज्जन और पढ़े लिख दिख रहे थे उसी कोच मे एक सामान्य व्यक्ति भी यात्रा कर रहा था दोनो की सीट आमने सामने थी दोनों चुप चाप बैठे थे । रात का समय था दोनों अपने अपने सीट पे सोने कि तैयारी मे थे लेकिन उन सज्जन को नींद नहीं आ रही थी उनका स्टेशन ज्यादा दूर नहीं था इसलिए सिर्फ लेटे थे खैर उनका स्टेशन आया और सामान लेके उतर गए लेकिन उतरते समय उनका पर्स वही पे गिर गया ट्रेन चलने को थी अचानक दूसरे व्यक्ति कि निगाह उस् पर्स पे पड़ी उसने उस पर्स को उठाया और इंसानियत की मिसाल कायम करते हुए दौड़ पड़ा सज्जन को ढुढने उसने यह भी नहीं सोचा कि उसकी ट्रेन छूट जाएगी पहला व्यक्ति ज्यादा दूर नहीं गया था ये चिल्लाते हुए उनके पीछे दौड़ा उन्होंने पलट के देखा की वो व्याक्ति उनके तरफ बहुत तेजी से आ रहा है तो वो रुक गए ये वहां पहुचां और उनका पर्स उनको सकुशल लौटा दिया यह देख के पहले व्यक्ति बहुत खुश हुए और उन्होंने उसे बहुत धन्यवाद दिया और मन् ही मन सोचा की आज भी इंसानियत जिंदा है इधर ट्रेन भी आवाज़ दे रही थी फिर से वो व्यक्ति आकर ट्रेन मे बैठा और राहत कि साँस ली


धन्यवाद

सत्येंद्र पाण्डेय 'शिल्प'

गोंडा उत्तरप्रदेश



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