व्यंग्य
गूगल सर्च कर मैं पढ़ रहा था कि पश्तो अफगानिस्तान की भाषा है . मैंने स्वयं को बुद्धिजीवी समझते हुये अपना ज्ञान चाय की चुस्की के साथ पत्नी जी की ओर उछाला . पत्नी ने मुझसे ज्यादा स्पोर्टसी स्प्रिट दिखलाई और बजाये इस उछाले हुये उथले ज्ञान को क्रिकेट के कैच की तरह लपकने के उसने बालीबाल की तरह वापस मुझे
ही दे मारा .
ही दे मारा .
आध्यात्म , दर्शन , राजनीती और सैन्य विज्ञान की मिली जुली व्याख्या करते हुये पत्नी जी बोलीं , किसने कहा कि अफगानिस्तान की भाषा पश्तो है ? वहां तालिबान का राज है , और उनकी भाषा बारुदी है . बंदूक की ठांय ठांय उनकी लिपि है . बमों के धमाके उनके अल्प विराम हैं . आतंकी विस्फोट के अपठित गद्यांश हैं . बेवजह की फायरिंग हर्ष नाद है . बारूदी गंध उनके लिये वैसी ही खुश्बू है , जो आपकी नई किताबों के बंडलो से आपको आती है . हथियार उनकी किताबें हैं और शस्त्रागार उनके पुस्तकालय . आपको नही लगता कि निरीह औरतों , बच्चों , बुजुर्गों की हत्या का क्रंदन तालिबानियों की भाषा का श्रंगार हैं . क्यो दुनिया तालिबान से परमाणु बम की उनकी ही भाषा मे बात नही कर रही ?
मेरे लिये पत्नी जी की यह यथार्थ विवेचना चौंकाने वाली थी . पेशानी पर बल देते हुये आंखें मींचते हुये एकटक पत्नी की ओर देखते , मैंने थोड़े धीर गंभीर स्वर में अंग्रेजी का सहारा लेते हुये बुद्धिजीवी होने का अपना पासा फेंका और कहा रियली , यू आर एब्साल्यूटली राईट . पर पत्नी जी कथित तालीबानी आतंकी शिक्षा मंत्री के बयान से भरी बैठी थीं , वे कहां संतुष्ट होने वाली थीं . उन्होने पलट वार किया , व्हाट राईट . देयर आर नो राईट्स टु वुमेन नाउ इन अफगानिस्तान और सारी दुनियां तमाशा देख रही है . व्हाट अ पिटी . वो सरे आम कह रहे हैं कि औरतों का काम बच्चे पैदा करना है , बस . औरतो की उच्च शिक्षा बेफिजूल है . लिंग भेद की पराकाष्ठा हो रही है . औरतों के साथ जानवरो सा सुलूक किया जा रहा है और सब देख सुन रहे हैं . शेम शेम. सरे राह कोड़े मार रहे हैं निरीह आबादी पर .
फिर कुछ सोचने की मुद्रा में पत्नी जी मुझसे मुखातिब हुईं , चलिए न सही बम , रवीन्द्र नाथ टैगोर की अंतर्राष्ट्रीय अफगानी कथानक पर भावनात्मक कहानी काबुली वाला पढ़ी है न आपने ? साहित्य की ताकत पहचानिये . मलाला ने गुप्त नाम से ब्लाग लिखकर ही तो इन कट्टर पंथियों के खिलाफ वैश्विक सोच कायम की थी . कम से कम आप ही कुछ ऐसा लिखिये कि आपको एक धमकी भरा तालीबानी मेल तो आये , तब में आपकी कलम की ताकत जानूं , देखियेगा कैसे मैं आपको हीरो बनाती हूं , दुनियां भर में .
मैंने चाय का खाली कप किनारे किया , और मोबाईल में अपनी लिखी नई कविता ढ़ूंढ़ निकाली , और पत्नी जी को सुनाने लगा . आप भी सुनिये ...
आतंकी उन्माद में,
जुल्म ढाओ ,
खूब,
पवित्र किताबों की गलत
व्याख्या कर
आधी आबादी पर,
एक दिन आएगा
जब बेबसी में
लड़का पैदा होते ही
मां खुद
लड़के का
गला घोंटने पर विवश हो जाएंगी
प्रसव कक्ष में ही
क्योंकि
लड़ाके दिग्भ्रमित लड़को
तुम्हें जन्म देने का अधिकार
स्त्री को ही दिया है
रब ने
मैंने देखा पहली बार पत्नी को मेरी किसी कविता सुनकर थोड़ा अच्छा लगा .उसने कहा इसे भेज दीजिये न कहीं छपने , और मैं मेल लाग इन करने लगा
विवेक रंजन श्रीवास्तव
A 233 , old minal , Bhopal 462023
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