हिंंदी दिवस विशेष
मैं था कभी नन्हा सा पौधा
रोपकर चले गए वो, किसी की याद में
बड़ी आस्था और विश्वास से
जमीन से जुड़कर हवा पानी के सानिध्य में
बढ़ता रहा, नई कोंपलों का स्वागत कर
संबल दिया उन्हें
देखो आज विशाल रूप मेरा खड़ा
पाने को विस्तार एक से अनेक हुआ
वटमाला सी बना ली मैंने
जड़ों में अनंत गहराइयां पा ली मैंने
जटाओंके झूले मैं झूलते हुए
मासूम बच्चे याद आते हैं मुझे आज भी
मैंने दी है असंख्य कीड़ों को पनाह
सब रेंगते से रहते मेरे अंदर
जैसे सहला रहे हो मुझे
हर मौसम को सहता हुआ
आज भी खड़ा मैं
हर पथिक विश्राम पाता
मेरी शीतल छांव तले
पीढ़ी दर पीढ़ी सुनता आया
सुख-दुख किस्से कहानी
जाने कितनों ने मेरी पीठ से
अपनी पीठ टिकाकर
चैन की सांस ली है।
बूढ़ा हो चला मैं
पर आज भी तटस्थ खड़ा
सुहागिनें आज भी बूढ़े बरगद
की माटी को शीश धरती है
आस्था और विश्वास देखकर उनका
आज भी मेरा जीने को मन करता है
देता हूं उन्हें वरदान, वचनों से बंधा हुआ
ताबीज भी हूं उनका।
दिए के उजालों से आज भी रोशन होता हूं मैं
न करना इस जमीन से जुदा मुझे
पहले आरियों से डरता था
अब मशीनों से लगने लगा है डर
कुछ भले लोगों से फिर से मुझे रोपने
की सुगबुगाहट से बहुतखुश हूं आज में।
नीता चतुर्वेदी
विदिशा मध्य प्रदेश
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