आने वाला कल - विष्णु सक्सेना


मेरे मित्र

तुम्हें खून कहाँ से दूं ?

मेरी रगों में

गंदे नालों का साफ़ किया हुआ

पानी बहता है !

मेरे शहर का वाटरवर्क्स

मरी हुई मछलियों का

बढ़ता हुआ ढेर

अपनी बदबूदार छाती पर

सहता है !

सोचता हूँ

आने वाले किसी कल में

इसी ढेर के साथ

मैं भी अपने पंजे फैलाऊंगा

तब मेरा विवेक

मुझसे कहेगा

तुम्हें गंगा जल से भरी अंजुरी

कहाँ से दूँ ?

मेरे मित्र

तुम्हें खून कहाँ से दूँ ?

मेरी रगों में

विद्युत् भट्टियों का पिघला हुआ

इस्पात बहता है ,

इस शहर के हर आदमी के पास

इस्पाती आँख ,इस्पाती कान

और एक इस्पाती दिल रहता है !

सोचता हूँ

प्रेम व शील इस युग की

किन्हीं पहली भट्टियों में गलकर

किसी लावारिस गढ़े में पड़े

अपना दम तोड़ रहे होंगे !

तब मेरा विवेक

आने वाले किसी कल में

मुझसे कहेगा


नियति द्वारा भोगे गए

नीम यथार्थ को

प्यार और आदर का

परिवेश कहाँ से दूँ ? **


विष्णु सक्सेना

गाज़ियाबाद

मो , 9896888017



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