ग़ज़लें विज्ञान व्रत की



मुझको  अपने  पास  बुला  कर
तू  भी  अपने   साथ   रहा  कर

अपनी   ही   तस्वीर   बना  कर 
देख  न  पाया आँख  उठा  कर

बे - उन्वान       रहेंगी       वर्ना 
तहरीरों  पर  नाम   लिखा  कर 

सिर्फ़    ढलूँगा    औज़ारों     में
देखो तो  मुझको   पिघला  कर

सूरज  बन  कर  देख  लिया ना 
अब  सूरज-सा रोज़  जला  कर 

                          विज्ञान  व्रत


ग़ज़ल ----

जुगनू    ही     दीवाने    निकले 
अँधियारा    झुठलाने    निकले 

ऊँचे    लोग    सयाने    निकले 
महलों   में    तहख़ाने    निकले 

वो तो  सबकी  ही   ज़द  में  था
किसके  ठीक  निशाने   निकले 

आहों   का   अंदाज़   नया  था 
लेकिन   ज़ख़्म   पुराने  निकले 

जिनको पकड़ा हाथ समझ कर 
वो     केवल    दस्ताने   निकले 

                           विज्ञान  व्रत



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