तुम कान्हा जैसे पत्थर हो -पागल

 तुम कान्हा जैसे पत्थर हो माना तुमसे कहा नहीं है।

फिर भी मेरे प्राणेश्वर हो माना तुमसे कहा नहीं है।।


हमने तो गुणगान किया प्रतिपल जोगन मीरा बनके 

बाँची कुछ रहस्य लीलाएं जग में अपढ कबीरा बनके

इस गोपी के श्यामसुंदर हो माना तुमसे कहा नहीं है।।२


बहुत तपस्या की है हमने तब तव सुलभ हुए दर्शन ।

स्वाति प्रियतमा के चातक प्राणों को सुलभ हुए परछन।।

हो मरुथल के मेघसुहृदवर,माना तुमसे कहा नहीं है।।३


तुमसे सुन्दर कौन यहां है जग-उपवन तुमसे शोभित है।

ये गुलाब क्या भेजूँ तुमको ये भी तो तुमसे सुरभित है।।

तुम बसन्त सब तुम बिन पतझर माना तुमसे कहा नहीं है।।४


छंद,प्रबन्ध,सुगन्धित,पावन हम नित अर्पित करते हैं।

भाव प्रेम के सारे मालिक तुम्हें समर्पित करते हैं।

ऐ!पागल के निष्ठुर दिलबर माना तुमसे कहा नहीं हैं।।५

 आर बी शर्मा पागल हरदोई




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