लाडली दुलारी हिंदी है-प्रवासी जी


*तुलसी के मानस की गरिमा माॅं के सुहाग की बिंदी है;*
*मीरा के गिरिधर नागर की जिसमें बहती कालिंदी है;*
*भारत की वही राष्ट्रभाषा, जन-जन की प्यारी हिंदी है!*
*तेरी हिंदी, मेरी हिंदी,सारे भारत की हिंदी है!!१!!*

जो सूर, कबीरा की वीणा, बंशी रसखान, बिहारी की;
भूषण, जयशंकर, भारतेन्दु हिंदी सेवा व्रतधारी की;
जिसकी उपमाओं में पगकर तन्मय हो उठा "निराला" है;
जिसकी नैसर्गिक सुषमा में बन गया पंत मतवाला है;
हो अलंकृता नख से शिखर तक, नवरंगी चूनर ओढ़ चली;
कविकुलगुरु का वरदान लिए लाडली दुलारी हिंदी है!!
तेरी हिंदी मेरी हिंदी सारे भारत की हिंदी है!!२!!

गुजराती, मलयालम, तामिल,तेलुगू, मराठी, बंगाली;
राजस्थानी, गुरुमुखी,आंध्र, डिंगल, सिंधी, कन्नड़,पाली;
अवधी, ब्रज या बुंदेलखंडी, कर्नाटकीय, वैदर्भी हो;
गढ़वाली, द्रविड़, मारवाड़ी, चाहे स्वर लिपि जैसी भी हो;
जिसके विभिन्न रंगरूपों में खिल कर प्रसून हैं महक रहे;
विविधा में एकरूपता की जननी फुलवारी हिंदी है!!३!!
तेरी हिंदी मेरी हिंदी----!!

इसकी साधना नहीं बंदी है साधन की दीवारों में;
इसकी कल्पना नहीं भटकी है महलों की मीनारों में;
इसकी विधि है कभी विविधताओं की दासी नहीं बनी;
इसकी सत्ता कभी महत्ताओं की प्यासी नहीं बनी;
जो स्वयं सुंदरम्, सत्यरूप, शिव बनकर पचा रही विष को;
जीवन दर्शन अमृत तुमको देरही हमारी हिंदी है!!३!!
तेरी हिंदी मेरी हिंदी सारे भारत..

ले राजनीति की ढपली तुम बेसुरे अलापो निर्मम स्वर;
गुटबाजी, तिकड़मबाजी की शतरंजी गोटें फेंको पर;
इस स्वर्गङ्गा की धारा में परनालों का जल मत घोलो;
इस सरस्वती की वीणा पर व्यवसायी वाणी मत बोलो;
यदि नहीं समझ पाये अबतक तो सोच समझ का ठीक करो;
सर्वांगरूप से पूर्ण हमारी सहज नागरी हिंदी है!!४!!
तेरी हिंदी मेरी हिंदी...

ऊपर परिधान स्वदेशी है पर अंतःकरण विदेशी है;
तन तो इस माटी का लगता भावना मगर परदेशी है;
पुरुखों का स्वप्न सौंप दोगे यदि अंग्रेजी के हाथों में;
तो स्वतंत्रता सिर धुना करेगी राहों पर फुटपाथों में;
खिलवाड़ करो मत संस्कृति का कुर्सी के छक्के पंजे से;
पनपेगी इसमें नई पौध संस्कृति की क्यारी हिंदी है!!५!!
तेरी हिंदी मेरी हिंदी....

सॅंभलो शब्दावलि के शिल्पी उचटा दो नींद उनींदों की;
कुछ मौन-मौन कह रही आज तुमसे आवाज शहीदों की;
भय है, कुचक्र जो चक्रित है धरती पर, कहीं न चल जाये;
जल गया तुम्हारा तक्षशिला, नालंदा कहीं न जल जाये;
फूॅंको अब भैरव पाञ्चजन्य, टंकार उठे भूमंडल में;
सिकता का अणु-अणु गूॅंज उठे जब आज विपन्ना हिंदी है!!६!!
तेरी हिंदी मेरी हिंदी सारे भारत की हिंदी है!!

- प्रवासी जी-

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