माना इस समय ये एक ज़रूरत हमारी है।
किन्तु मोबाइल अब मानसिक बीमारी है।।
आज हम अपने ही घर में अजनबी हो रहें है।
और परिवार के लोगों से रिश्ते मतलबी हो रहे है।।
बाबाओं में सबसे लोकप्रिय इस समय गूगल बाबा हैं।
लोगों के मानसिक भोजन हेतु वे एक इंटरनेशनल ढाबा हैं।।
हर उम्र के लिए वे एक अत्यावश्यक खुराक हैं।
अन्यथा मोबाइल एडिक्टों की दुनिया उदास है।।
युवाओं के जिज्ञासु मन जब गूगल टटोलते हैं।
वे विकल्पों सहित तुरन्त थालियाँ परोसते हैं।।
हम गूगल बाबा की शिक्षाओं से होशियार हो रहे हैं।
किन्तु कितनी अच्छी चीजों के बहिष्कार हो रहे रहे हैं।।
ये अभिव्यक्ति की तथाकथित आज़ादी है।
या मानसिक विकृति की मुखर मुनादी है।।
गुरु होकर भी वे हमारे आदेशों के गुलाम हैं।
उन्हें तो केवल हमारा डाटा खाने से काम है।।
कंटेंट का पीढ़ी और समाज पे क्या असर होगा।
उन्हें कोई मतलब नहीं है क्या नीचे-ऊपर होगा।।
माना मशीनें सुगमता की चावी हैं।
किन्तु वे संवेदनहीन हैं ये खराबी है।।
वे भला मानव-विकल्प कैसे हो सकती हैं।
आधुनिक मशीनी दौड़ ये कहाँ समझती है।।
हम अपने दादी-बाबा का बहिष्कार कर रहे हैं।
और गूगल बाबा से मनमाने संस्कार भर रहे हैं।।
मेरे बाबाजी अनुभव और ज्ञान की पिटारी हैं।
क्योकि सत्तर वर्षों से उन्होंने ये दुनिया निहारी है।।
रोज रात के बारह बजे तक पोर पर किस्से सुनाते थे।
नीति-ज्ञान के साथ ही परीलोक की सैर कराते थे।।
किन्तु वे अब अकेले ही समय बितातें हैं।
मोबाइलखोर बच्चे उनके पास नहीं जाते हैं।।
क्योंकि मोबाइल ने दिमाग हैक कर लिया है।
मेमोरी को दूसरी दुनिया में टैग कर दिया है।।
किशोर अब एकांतवासी होने लगे हैं।
आधुनिक योगी-सन्यासी होने लगे हैं।।
हाल के वर्षों में कितनी निर्भया और मनीषाएँ लुट रही हैं।
संस्कारों के लिए विश्वविख्यात देश की छाती फट रही है।।
लोग आधुनिक बाबाओं के चक्कर में ज्यादा हैं।
जो कि देश की लुटिया डुबो देने पर आमादा हैं।।
कहीं परलोक सुधारने,तो कहीं पर हूरों का वादा है।
जबकि भक्तों को लूटना ही उनका एकसूत्रीय इरादा है।।
जबसे उनकी गुप्त लीलाओं का लोगों को ज्ञान हुआ है,।
और कुछ गुरुघंटालों का कारागार को प्रस्थान हुआ है।।
तबसे कुछ अंधभक्तों का भ्रम टूटा है।
किन्तु कुछ की श्रद्धा अब भी अटूटा हैं।।
आर बी शर्मा पागल हरदोई( कवि शिक्षक)
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