सितंबर महीने में एक हिंदी पखवाड़ा आता है जो कुछ हिंदी प्रेमियों के उच्चारण में हिंदी पकौड़ा मालूम होता है। वजह यह कि इस दौरान हिंदी की याद में कुछ समारोह आयोजित होते हैं जिनमें भाग लेने वालों को चाय के साथ पकौड़े बंटते हैं। वरिष्ठ व्यंग्यकार और हिंदी व्यंग्य के इकलौते इतिहासकार श्री सुभाष चंदर हिंदी दिवस, सप्ताह और पखवाड़ों के चहेते मुख्य अतिथि और स्थापित अध्यक्ष हैं। इस वज़ह से वे दिल्ली समेत देश के कोने-कोने में ऐसे कार्यक्रमों में मंच पर सुशोभित रहते हैं। अगर आप उन्हें आमंत्रित करें तो उनकी सेवा में पेश करने के लिए मैं एक विशेष प्रकार के पकौड़े की तजवीज़ करता हूं जिसकी रेसिपी नीचे बिखरी है।
सबसे पहले एक बड़ा प्याज़ सा गोल मुद्दा लें यानि जिसकी परतें उतारते चले जाएं तो भी आखिर में कुछ ना निकले। इसकी धज्जियां उड़ाकर इसमें कुछ विट का लहसुन और आयरनी का अदरक बारीक काटकर मिला लें। अब वक्रोक्ति की हरी मिर्च लंबे लंबे काट कर डालें। इस मिश्रण पर थोड़ा सरोकार का नमक और मजेदार चटपटे पंच का मसाला छिड़कें। इस रंग बिरंगे गड़बड़झाले को व्यंग्य शैली के बेसन में थोड़ा हास्य के पानी के साथ मिलाकर लुगदी सा बना लें। अब जैसे बन पड़े, उठा कर छोटे बड़े कॉलमों के आकार में गढ़ लें और किसी समसामयिक तेल में तल लें। लज़ीज़ हिंदी व्यंग्य पकौड़ा तैयार है।
पर सुभाष जी को पेश करने के लिए थोड़ी और मेहनत करें। एक पुस्तकाकार प्लेट में आड़े तिरछे रख कर, जितने जुगाड हो सकें, भूमिकाओं की चटनी के साथ अपने आत्मकथा के छल्ले भी सजा दें। वैसे सुभाष जी ऐसे पकौड़े ग्रहण करने के लिए अपना निजी आलूचना तरीदार साथ रखते हैं पर आपका जी करे तो किसी से अपनी पसंद का आलूचना बनवा कर रख लें। साथ में उधारी समीक्षा की मीठी हरी मिर्च भी रख सकते हैं। मूड में आया तो सुभाषजी उन्हें भी चख लेंगे।
मेरी गारंटी है कि इस पकौड़े को खा कर सुभाष जी मोगैंबो की भांति खुश होंगे। फिर उनकी तेज रफ्तार जुबान और पैनी हो कर आपके समारोह में धूम मचा देगी।
कमलेश पाण्डेय
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