वर्तमान समय की चकाचौंध और भागदौड़ की प्रतियोगिता में हम मानव जाति अपनी सभ्यता, संस्कृति और समाज से कहीं -न कहीं पीछे छूटते जा रहे है ।इसका असर किसी व्यक्ति विशेष या समुदाय विशेष पर नहीं पड़ता है ।इसका असर वर्तमान और भविष्य दोनों पर पड़ता है ।मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है , वह समाज और संस्कार के बिना अधूरा रह जाता है ।इसी समाज और संस्कार का असर हमारे बच्चों और आने वाली पीढ़ी पर पड़ती है ।इसकी कमियों और खामियों के लिए किसी एक पहलू को दोषी करार दिया जाए तो बहुत हद तक इस समस्या से निवारण पाया जा सकता है , गहराई से देखा जाए तो ऐसा नही है ।
सबसे बड़ी बात यह है कि आज कल के युवा वर्ग ही अपनी सभ्यता और संस्कृति से दूर होते जा रहे है ।जैसे -बड़े -बुजुर्गो के साथ उठने -बैठने मे झिझकना ,बड़ो को प्रणाम करने मे शर्म महसूस करना ,संस्कृति और समाजिक कार्यक्रम से दूर रहना आदि ।इन सबका असर हमारे बच्चों पर भी पड़ता है ।अपने ही घर मे बच्चे परिवार के रहते हुए भी अकेलापन महसूस करते है , कहीं काम -काजी माता-पिता होने पर तो कहीं अन्य कारणवश ।आज सभी अपने परिवार को बहुत कम मे ही समेटना चाहते है ।इसके अंतर्गत घर मे सिर्फ माता-पिता और बच्चे रहते है या तो बुजुर्गो को उनकी हालात पर छोड़ देते है या ज्यादा हुआ तो वृद्धा आश्रम में पहुंचा देते है ।यहीं तो हमारे बच्चे भी देख रहे है और उनके अंदर भी ऐसी ही भावना की उपज होती है और वह यह नही जान पाते है कि परिवार की एकता मे कितना बल है ? वह भी 12-15 वर्ष की उम्र तक अपना एक निजी कमरा और अपने अंदर एक ऐसा माहौल बना लेते है जहाँ उनके सिवा कोई हस्तक्षेप ना कर सके यहाँ तक कि जन्म देने वाले माता -पिता भी नहीं जान पाते है कि उनके बच्चे कब उनसे दूर होते चले गए ।अतः कहीं -न कहीं इसके माता-पिता और परिवार भी है ।
वर्तमान युग के बच्चों मे घटते संस्कार का एक और महत्वपूर्ण पहलू है - इन्टरनेट और सोशल मीडिया का खौफ ।इसके अच्छाई के साथ -साथ बुरे प्रभाव भी अधिक है जो हमारे बच्चों को हमारे संस्कार से दूर करने मे महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है ।आज के दौर मे सोशल परमीडिया से घिरे रहते है ।बच्चे भी इससे अछूते नही रहते है , वह भी फोन के बिना चार लोगों के बीच अपने आप को असहज महसूस करते है और उन्हे एक ऐसी लत लग जाती है जिसमे सब कुछ भूल कर उन्हे अपना सुनहरा भविष्य नज़र आने लगते है ।वह यह भूल जाते है कि इसके अलावा भी कुछ है ।
सोशल मीडिया पर फैले अश्लीलता, वायरल वीडियो और फोटो बच्चो को वही करने के लिए उकसाते है ।वहाँ यह दिखाया जाता है कि कम समय मे मन की सारी इच्छाए और पैसे कमाए जा सकते है ।अश्लीलता की हदे पार कर दी जाती है और वहीं फोटो और वीडियो जल्दी वायरल होती है ।इसका एक बहुत बड़ा असर बच्चो की मानसिकता पर पड़ती है और वह निरंतर इस दलदल मे फसते चले जाते है ।उनके अंदर यह हावी हो जाता है कि मैं भी ऐसा करूंगा तो जल्द ही प्रसिद्धि प्राप्त होगी जो कि ऐसा है नही, वह यह भूल जाते है कि संघर्ष करने से ही फल की प्राप्ति होती है और संघर्ष का फल ही मीठा होता है ।
आज कल सोशल मीडिया पर एक और दिलचस्प बात देखी जाती है और वह है आनलाइन प्यार ,जिसे अपने परिवार और संस्कार का ज्ञान नही वह फेसबुक और अन्य सोशल साइट्स पर प्रेम का खेल खेलते है ।वह रिश्ता कुछ दिन चलने के बाद कहासुनी होने पर रिश्ता खत्म ।ऐसी स्थिति मे बहुत से लोग परेशान होकर आत्महत्या तक कर लेते है । इन सबका असर हमारे बच्चों के संस्कार पर पड़ रहा है ।अगर समय रहते हुए इसे नही रोका गया तो बच्चों के अंदर से संस्कार तो गायब होते जा ही रहे है साथ ही साथ इसके परिणाम भी घातक सिद्ध होगे ।
नाम -बन्दना कुमारी
पता -कोलकाता, पश्चिम बंगाल
ईमेल -bandanak356@mail.com
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