प्रिय शिष्य
सदा खुशहाल रहो
मेरे प्रिय शिष्य जब मैं आपको पान ठेला में खड़ा देखता हूं तो ऐसा लगता है मेरे द्वारा दी गई शिक्षा सार्थक हो गई मेरा सीना गर्व से दो गुना हो जाता है जिस प्रकार किसी साधु के सामने कोई भक्त आशीर्वाद के लिये हाथ फैलाये खड़ा रहता है उसी प्रकार तुम पान के लिये हाथ फैलाये खड़े रहते हो,और जैसे ही साधु का आशीर्वाद तुम्हें प्राप्त होता है, तुम प्रसन्न होकर गन्तव्य में चल देते हो, उसी प्रकार जब तुम्हें पान प्राप्त होता है,तुम प्रसन्न हो अपने मुखार बिन्दु पर पीले-पीले दातों से चबाते हो तो मेरी तर्क बुद्धि यह सोचती है कि पान कुसंस्कार है और तुममें कुसंस्कार चबाकर नष्ट करने की क्षमता है, तुम अक्षम नही हो। जब तुम्हें गुटका मुंह में डाले हुए देखता हूं तो तुम्हारे संयम की में दाद देता हूं,तुम वास्तव में इंद्रजीत हो ।अरे कौन इंद्रिय संयमित होगा जो निवाला मुंह में रखे रहे , और बगैर निगले पीक करते हुए निकाल दे वास्तव में तुममें असीम इंद्रिय संयम है।
जब तुम्हें सिगरेट सुलगाने के लिए माचिस की तीली जलाते हुये देखता हूं तो, चिन्ता सी होती है कि कहीं तुम हिन्दुस्तान में आग लगाने तो नही जा रहे हो,पर जब सिगरेट सुलगाकर धुंआ उड़ाते हुये देखता हूँ, तो पर्यावरण प्रदूषण का जो नारा लगाते हैं उनकी मूर्खता पर तरस आता है तुम्हारी गहराईयों को मनन करने की क्षमता तो उनमें है ही नही। जिस प्रकार धुंआ आकाश में वायु में मिलकर विलीन हो जाता है। वायु में समाहित हो जाता है इससे तुम एकता का संदेश देते हो। तुम जब गलियों में इठलाते हुये चलते हो ऐसा लगता है कि आपको बाहरी जगत मिथ्या नजर आता है। जो कुछ है वह मैहूं, मैं ही सत्य हूं। यह देख मैं अति प्रसन्न होता हूंँ।जब तुम सीटी बजाते हुये गलियों से निकलते हो,तो मुझे लगता है कि तुम वास्तव में योगी हो । नाद्य योग द्वारा श्वांस रोककर श्वांस को सीटी द्वारा निकालना एक योगी ही कर सकता है।जिसे तुम सड़क चलते ही कर लेते हो। उन योगियों को तो तुमसे विद्या सीखनी चाहिये।श्वांस प्रश्वांस की गति के तुम वास्तव में पारखी हो तुम योगी नही महायोगी हो। धन्य हैं आप और धन्य हूं मैं जिस ऐसे..शिष्य मिले।
मैं मानता हूं आपके घर में सुबह हो या शाम, दोपहर हो या रात पक्षियों के कलरव सी ध्वनि भोर की चहल-पहल सा वातारण हमेशा रहता है।तुम्हारे पिताजी जब चिन्ताहरण (शराब) लेकर आते हैं तो अलग ही माहौल रहता है। वे चिंता से मुक्त अपनी निर्विवाद शैली का प्रयोग करते हैं तो आप मूक बनकर देखते रहते हैं।आपमें जानने करने की क्षमता अतुलनीय है।निश्चत ही आप अपने पिता के पद चिन्हों पर जायेंगे।
दूसरों के बहकावे मैं आकर जब तुम आन्दोलन ,चक्काजाम, लूट, तोड़फोड़ करते हो, तो देश की प्रगति में बाधा की चिंता सी होती है पर यह सोचकर संतोष करना पड़ता है कि एक न एक दिन सभी को मिट्टी में मिलना है। यह शरीर नश्वर है इस नश्वर संसार में हम स्थाई दे भी क्या सकते हैं।समाज के लोग तुम्हें एवं तुम्हारी गतिविधियों को असामाजिक की संज्ञा देने से नही चूकते ।उनकी बातों पर ध्यान न देकर अपने लक्ष्य को लेकर चलने की तुममें क्षमता है, इससे पता चलता है कि तुम कितने आत्मविश्वासी हो।
मुझे याद है जब तुम एक-एक कक्षा में दो-दो, तीन-तीन बार फैल हो जाने के बाद भी लगातार पढ़ाई करने में नहीं चूकते थे,हिम्मत नही हारते थे,उस कक्षा को पास करने में भले ही कुछ साल लगे हों पर तुमने पढ़ाई नही छोड़ी मजबूरन तुम्हारे पिताजी ने तुम्हें अपने कारोबार में लगाने का फैसला किया,और जब तुम्हें स्कूल से निकालने आये तुम कितने शांत थे। स्कूल के सभी छात्र तुम्हें किन नजरों से देख रहे थे। उनके भावों को तुमसे अधिक और कोई नही समझ सकता आज स्कूल में तुम्हारे जाने के बाद असीम शांति कहां। तुम्हारे जो अनुयायी है वे भी स्कूल की गतिविधियों को तुम्हारे ही तरह लेते हैं।
आशा है आप आने वाली पीढ़ी के लिये कुछ नया कर दिखाने के लिये प्रतिबद्ध हैं। आपकी अनुपम निर्विवाद प्रवृत्ति आपके अनुयायियों के लिये पथ प्रदर्शक रहे। उन्हें अपनी दी हुई विद्या एवं अनुभवों का जायजा-जायका लेने-देने के लिये आप सक्षम है। अपने एवं दूसरों के लिये आप आनंद में परमानंद ढूढने के प्रयासरत हैं आशा है आप सफल होंगे। मेरा यह पत्र आपके एवं आपके अनुयायियों के लिये शायद प्रेरणा दायक हो। आप कुछ नया करें इससे पहले।
आपका असहाय शिक्षक
डॉ. रामकुमार चतुर्वेदी
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