सूखा पत्ता-नीलम

तेज हवा के बहने के पल में, 

एक सूखा पात आ ठहरा तल में| 

वहीं एक पेड़ की शाखा से , 

हरे पात ने देखा ऊपर से|

बोला उपहासी प्रयोजन से, 

स्वयं के लिए गर्वित था मन से|

तुम यूँ ही हवा से डोला करते, 

क्यूँ  न सामना उसका करते |

 जब चले हवा मैं मुस्काता  हूँ, 

तनिक भी नहीं उससे घबराता हूँ|

तब सूखा पत्ता मुस्करा के बोला, 

और फिर राज खुद का खोला|

 तुम लहरा रहे हो जिस डाली पर, 

मैं भी फूला था इक दिन डाली पर|

तब मैं भी था बड़ा अभिमानी, 

समझता  था खुद को ज्ञानी|

अब सत्य जाना जीवन नश्वर, 

 हरियाली तो कैवल पल भर|

तू भी सूख जायेगा सुन प्यारे! 

तू सत्य समझ न इतरा रे! 

कोई अमर नहीं इस जग में, 

सब पात सूख जायेंगे क्षण में|

 सुख का न अभिमान करो, 

जग में सबका सम्मान करो ||


नीलम शर्मा

विकासनगर.देहरादून उत्तराखंड




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