बच्चों में घटते संस्कार- दोषी कौन?-कंचन जयसवाल

 

  बच्चों में घटते संस्कार के दोषी तो हम माता-पिता ही है। हम ही जीत लगाकर बैठे हैं कि, उसका बेटा या बेटी इतने स्मार्ट हैं वह तो कितने बड़े स्कूल में पढ़ते हैं इंग्लिश भी कितनी अच्छी बोलते हैं, और हम भी लग जाते हैं अपने बच्चों को वैसा ही बनाने में, बस दुनिया की भागम भाग में लग जाते हैं

और यहीं पर हम गलती कर रहे हैं हमें अपने बच्चों को अच्छे संस्कार देने की जरूरत है ना की, उसे देखा देखी सिखाने की। माना कि समय के साथ हमें बदलना चाहिए परंतु आधुनिकता की चाहत में हमें अपने संस्कारों को भी नहीं भूलना चाहिए, और यह संस्कार हम अपने बच्चों को अपने घर से ही दे सकते हैं। पहले के जमाने में हम किसी के घर जाते थे और उनका बच्चा कर हमें नमस्ते पड़ता हमारे पैर छूता तो मन को कितना अच्छा लगता था। हम भी पहले अपने बढ़ो से बातें करते समय जी लगाकर बात किया करते थे जो सुनने में भी मन को भाता था, और आज का जमाना आज हम खुद बड़े हाय हेलो करते रहते हैं, तो बच्चों को हम कैसे पैर छू कर प्रणाम करना सिखाएंगे।

हम एक और गलती कर रहे हैं अपने बच्चों को लेकर वह है "तुलना," करना हर बच्चा अपने आप में खास होता है इसीलिए बात-बात पर माता - पिता ने दूसरे बच्चों के साथ उसकी तुलना नहीं करना चाहिए बार- बार तुलना करने पर बच्चों के दिमाग में यह बात घर कर जाती है की पेरेंट्स उन्हें प्यार नहीं करते, धीरे-धीरे उनके मन में जलन की भावना बढ़ने लगती है और उनका आत्मविश्वास कमजोर होने लगता है। छोटे बच्चों को समझाना मुश्किल काम होता है लेकिन कुछ बातों के बारे में उन्हें बताना बहुत जरूरी है जैसे-ईर्ष्या यदि बच्चे अपने छोटे भाई-बहन से ईर्ष्या करते हैं तो पेरेंट्स को चाहिए की प्यार और धैर्य के साथ बड़े बच्चों को समझाएं कि अब यह छोटा मेहमान भी हमारे घर का सदस्य है, और इसकी देखभाल करना तुम्हारा भी कर्तव्य बनता है यह भी एक अच्छे संस्कारों में आता है

    और बच्चों के घटते संस्कार का कारण यह भी है आज के नवयुवक अकेले रहना चाहते हैं उन्हें परिवार में रहना पसंद नहीं किसी की दखलअंदाजी बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं कर सकते। जहां शादी हुई नहीं की वह अपनी अलग दुनिया बसा लेते हैं , पहले के जमाने में कितना बड़ा परिवार रहता था एक ही छत के नीचे 20 25 सदस्य बड़े आराम से एक साथ रह लेते थे किसी को अलग-अलग कमरे की जरूरत नहीं होती थी एक ही बरामदे में सभी मिलजुल पर सो जाया करते थे दादा -दादी ,चाचा - चाची  सब का साथ कितना अच्छा लगता था,चाचा के कंधे हमेशा भतिजे के चढ़ने के लिए हंस कर तैयार रहते थे। अपनों के साथ जिंदगी का सफर कब हंसकर गुजर जाता था पता ही नहीं चलता था। एक दूसरे की सुख दुख में काम आते थे कोई भी परेशानी आती सारा परिवार एक साथ उसका सामना करता था किसी गैर की जरूरत ही नहीं होती थी बच्चे भी तो यही देख -देख कर बड़े होते थे और उनके मन में अपने परिवार के लिए लगाव और भी बढ़ जाता था। एक साथ इतने लोगों का भोजन एक साथ बनता सब मिलकर एक साथ खाते तो आपस में और प्यार बढ़ता था दादा -दादी की कहानियां सुनकर सो जाते । कितना सुहाना बचपन हुआ करता था पहले

   मगर आज जमाना बदल गया है किसी को किसी की परवाह ही नहीं, आज का इंसान सिर्फ अपने बारे में अपने मतलब के बारे में सोचता है और अपने सुख के लिए ही निरंतर प्रयास करता रहता है उसे सिर्फ अपना परिवार ही चाहिए हम दो हमारे दो । और कहीं अगर किसी घर में बड़े-बुजुर्ग मिल भी जाए तो वह सिर्फ उपेक्षित ही होते हैं ना उन्हें प्यार मिलता है और ना ही उनकी अच्छे से देखभाल होती है ।जहां बड़े-बुजुर्गों ने कुछ अपने मन की ,की तो उनको अनाथ आश्रम का दरवाजा दिखा दिया जाता है।जो बिल्कुल ग़लत बात है ,हम अपने बच्चों से यह उम्मीद करते हैं की वह बड़ा हो कर हमारी देखभाल करें जैसा प्यार बच्चा अभी कर रहा वैसा ही प्यार हमारे बूढ़े होने पर भी करें तो,पहले हमारी यह जिम्मेदारी बनती है की हम भी अपने बूढ़े -बुजुरगो का सम्मान करे उनके साथ गलत व्यवहार ना करें , आखिर बच्चा घर पर जैसा देखेगा वैसा ही सीखेगा । बच्चे को पहली शिक्षा घर से ही मिलती है । और जरूरी भी है जिनके वजह से हम धरती पर आए उनका तो हमेशा भी सम्मान करना चाहिए और अपने बच्चों को भी यही संस्कार देना चाहिए।

   बहुत से घरों में अगर कोई मैहमान आ जाते हैं तो बहुत नाक मुंह बनने लगता है ,जो की सही नहीं है पहले के जमाने में अथिथी देवो भव कहा जाता था उनका स्वागत कितने अच्छे से किया जाता था बच्चे भी यही सब देख कर बड़े होते थे और वह भी इसी तरह के संस्कार लिया करते थे। आज हमें फिर से एक बार जरूरत है अपने बच्चों को वही संस्कार देने की हम अपने बड़ों का सम्मान करें घर में आने वाले मेहमानों का अच्छे से स्वागत करें, बच्चों का मन कोमल होता है जैसा देखेंगे वैसा ही करेंगे और यह सब हम माता पिता पर निर्भर करता है कि हम उन्हें कैसे संस्कार देते हैं उनके जीवन में।


कंचन जयसवाल

नागपुर महाराष्ट्र



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