"यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमन्ते तत्र देवता"
अर्थात जहां नारी की पूजा होती है. वहां देवताओं का निवास होता है। नारी सम्मान और सशक्तिकरण का जैसा उदाहरण भारतवर्ष के पुराणों और ग्रंथों मैं देखने को मिलता है वैसा अन्यत्र किसी भी देश के साहित्य या ग्रंथों में देखने को नहीं मिलता।
किंतु वक्त की विडंबना देखिए आधुनिक काल में आते-आते हमारे लेखकों की लेखनी में अंतर आता चला गया और उन्होंने नारी की दुख भरी दास्तान सुनाते हुए लिख दिया "अबला जीवन हाय
तुम्हारी यही कहानी"
आंचल में है दूध और
आंखों में पानी"
तो क्या हम यह सोचे आधुनिक युग की सुसंस्कृत पढ़ी-लिखी सर्वगुण संपन्न नारी इतनी कमजोर हो गई है?। कि वह अपने अधिकारों और स्वाभिमान की लड़ाई दूसरों को शारीरिक मानसिक आर्थिक और सामाजिक क्षति पहुंचाकर ही कर सकती है जबकि यह वह भारत है जहां की नारी अपने तेज और सतीत्व के बल पर रावण जैसे अहंकारी और शक्ति संपन्न व्यक्ति को भी तिनके की धार के बल पर परास्त कर सकती थी। वह अपने बाहुबल से इतनी बड़ी इतनी बड़ी अंग्रेज हुकूमत से दो-दो हाथ कर सकती थी।फिर भी इतनी शक्ति संपन्न नारी इतनी कमजोर निर्बल और बेचारी कब से हो गई
कि हमारे संविधान में "महिला सशक्तिकरण" जैसा संशोधन पास करना पड़ा कारण चाहे जो भी रहा हो पर आज की वास्तविकता यही है कि आज की नारी उत्तरोत्तर उन्नति की ओर बढ़ते हुए भी निर्बल असक्षम और असहाय ही बनी रहना चाहती है। उसे पग-पग पर कानून का सहारा लेना पड़ता है।
आखिर क्यों?.. कहीं अपनी इस विषम परिस्थितियों के लिए वह स्वयं ही तो उत्तरदाई नहीं है क्या आपने कभी सोचा है कानून के रूप में नारी ने जो शक्ति प्राप्त की है कहीं भी उनका दुरुपयोग तो नहीं कर रही या यह बात नारी को खुद ही समझ नहीं आ रही क्यों कि यह कानून तो वास्तविक पीड़ित महिलाओं के लिए ही बनाया गया है.सच की लड़ाई लड़ना तो वाजिब है ।पर झूठे केसों ने से परिवारों और समाज की स्थिति बहुत विषम हो गई है परिवार टूट रहे हैं,बिखर रहे हैं, समाज में एक डर का माहौल व्याप्त है। मी.टू ,बलात्कार, घरेलू हैरेसमेंट, दहेज हत्या या प्रताड़ना जैसे लांछन ने अच्छे - अच्छे परिवारों और युवकों को हिला कर रख दिया है पूरे के पूरे परिवार की जिंदगी दांव पर लगी हुई हैं।
कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाते-लगाते वह थक जाते हैं,सामाजिक प्रतिष्ठा धूमिल हो जाती है। यह ठीक है की कसूरवार को तो सजा मिलनी ही चाहिए।लेकिन इस प्रकार का अपराध किया गया हो तो. वह क्षमा के काबिल हो ही नहीं सकता।किंतु इसी के साथ यह भी एक कटु सत्य है कि अपने अहंकार ओर अपना वर्चस्व स्थापित करने की कोशिश में आज की नारी अपनी जिद के कारण झूठा केस लगाने से भी नहीं चूकती इसी कारण कोर्ट में आ रहे केसों की दर दिन- प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। जो नारी घर की इज्जत हुआ करती थी.आज कंधे से कंधा मिलाकर लिव-इन- रिलेशनशिप को स्वीकार कर रही है। "ठीक है!. यह उसकी अपनी कानूनी स्वतंत्रता है" फिर आखिर क्यों वह उसी कानून का दुरुपयोग करने में सबसे आगे है।क्यों सालों-साल साथ रहने के बाद उसे याद आता है कि जिस पुरूष के साथ वह रह रही है वह पुरुष उसको धोखा दे रहा है?..उसका शारीरिक शोषण कर रहा है।"आज से 10 साल पहले फलां पुरुष ने उसकी तरक्की के बदले में उसका सेक्सुअल हैरेसमेंट किया था"। आप ही बताइए क्या किसी को बुला कर एक व्यक्ति बार-बार बलात्कार कर सकता है?.. चलो माना कि यह भी सच है तो क्यों लड़की के परिजन10- 20 लाख की रकम से लेकर अपना केस वापस ले लेते हैं ?..कानून की पेचिदगियों से बचने के लिए लड़के वालों का परिवार अपना मकान जमीन बेचकर या गिरवी रखा उसकी भरपाई करता है। क्या यह एक बहुत बड़ी सामाजिक विसंगति नहीं बनती जा रही?। पारिवारिक विघटन करने में भी नारी ने कानून का दुरुपयोग करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है वह अपने परिवार और पति पर इतने घिनौने इल्जाम लगाती है कि आप पूरी तरह से सहानुभूति पूर्वक उसी का पक्ष सुनेंगे क्योंकि उसे पता है कोर्ट का निर्णय तो उसी के पक्ष में आना है विमेन-पावर (महिला सशक्तिकरण) का हथियार जो है उसके पास छोटी-छोटी बातों का बतंगड़ बना कर घर में कलेश मचा ना अपनी सुसंस्कृत अहंकारी आदत में शामिल कर लेती है।
बातें बहुत होती हैं!.जैसे--
"तुम्हें घर में पैसे देने की क्या जरूरत थी,उनके पास कोई कमी नहीं है"। "तुम्हारे माता-पिता की मेरे घर में कोई जगह नहीं है"यहां क्यों आये है?..
लड़के के विरोध करते ही कानून का सहारा लेने खड़ी हो जातीं है।
क्या यह सही है?.
कभी-कभी तो महिलाओं द्वारा कोई इतनी भयाक्रांत करने वाली बात कह दी जाती है कि हमें कहने-सुनने में भी संकोच लगता है।क्या यह मानवीयता पूर्ण व्यवहार है?..ओर इन्ही बातों को लेकर सुशिक्षित और जागृत नारी छोटी-छोटी बातों का बतंगड़ बनाती हुई कानून का सहारा लेकर तहस-नहस कर देती है परिवारों को झूठ की नींव पर खड़ी करती है। विध्वंस की इमारत और उसमें बराबर के साझीदार होते हैं उसके परिवार वाले जो लड़के से मोटी रकम की मांग के लिए लड़की को उकसाते हैं।
कोर्ट में आए केसों का अध्ययन किया गया तो पाया गया कि इन में से कई केस झूठे हैं।इन आश्चर्यजनक परिणामों को सामने लाने के लिए महिला वकील ज्यादा सामने आई ओर उन्होंने पुरुषों के पक्ष में खड़े होकर केस जीते भी इन महिला वकीलों ने यह हकीकत बाहर कर लाई कि सजा भुगत रहे पुरुष कि तो कोई गलती थी ही नहीं और ना ही उसके परिवार वालों की।
तो क्या यह कानून का दुरुपयोग नहीं है?.. जब ऐसे केसों की संख्या बहुत बड़ती हुई देखी गई तो जुलाई 2021 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा यह कानून पास किया गया जिसमें साफ-साफ लिखा है कि लिव-इन-रिलेशन और सेक्सुअल हैरेसमेंट के केसों में अगर कोई भी लड़की काफी लंबे टाइम बाद केस दर्ज कराती है और वह पढ़ी-लिखी भी है! नाबालिग नहीं है! तो इस अपराध की वह बराबर की जिम्मेदार है।
रेखा दुबे
विदिशा(मध्यप्रदेश)
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