हिंदी दिवस विशेष
माँ से सीखी है जो भाषा,
वही है मेरी मातृभाशा।
मेरी मातृभाषा है हिंदी,
जैसे सुंदर मुख पर बिंदी।
मनोभावों को व्यक्त करना,
बड़े-छोटे में फर्क करना,
यह हमको सिखलाती है।
‘तुम’ और ‘आप’ का प्रयोग सिखाकर,
हमें यह सभ्य बनाती है।
माँ जैसी ही प्यारी है यह,
प्रेम की भाशा कहलाती है।
कथा-सम्राट प्रेमचंद हों,
या महाकाव्यकार तुलसीदास।
रीतिकाल, आधुनिक काल को याद करें,
या आदिकाल, भक्तिकाल की बात करें।
हर काल ने अनेक साहित्यकारों से,
इस भाषा रूपी मुकुट में हैं अनमोल रत्न जड़े।
मातृभाषा में लिखना-पढ़ना,
जन-जन का अधिकार है।
मन के दुर्भावों को हो मिटाना,
तो मातृभाषा एक सशक्त हथियार है।
मातृभाषा से जो प्यार न हो,
तो हमको धिक्कार है।
माँ का स्थान है सर्वोपरि,
बाद में चाची, ताई को नमस्कार है।
मातृभाषा का प्रचार-प्रसार करो,
हिंद में तो हिंदी का साम्राज्य हो।
हिंदी किसी परिचय की नहीं मुहताज है,
यह जन-जन की आवाज़ है।-2
भावों का सच्चा उद्गार है,
इसमें समाहित जीवन का सार है।
हिंदी मेरी मातृभाषा है,
हिंदी का यश फैले सर्वत्र,
इसके लिए समर्पित ये प्राण हंै।
यह मात्र भाषा नहीं, यह हिंदुस्तान की शान है।-2
जय हिंद, जय हिंदी
सीमा रानी मिश्रा
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