दस दिनों का सफर भागलपुर - मनाली - भागलपुर भाग-1

 घूमने का शौक आखिर किसे नहीं होता, अक्सर लोग समय मिलते ही कहीं न कहीं घूमने का विचार बनाने लगते हैं। कुछ लोग समय के अभाव में, तो कुछ लोग जानकारी, वही कुछ लोग पैसे के अभाव में बहुत सी मनमोहक जगहों को देखने वंचित रह जाते हैं। मुझे जैसे ही घुमने का मौका मिलता है उसे छोड़ता नहीं हूँ। इसी कड़ी में एक साथी के विशेष अनुरोध पर "बहु-विषयक अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी" में भाग लेने साधना स्थली, कुल्लू (हिमाचल) रवाना हुआ। अंदर से बहुत रोमांचित हो रहा था। हो भी  क्यों  नहीं जिसे किताबों, मानचित्रों टीवी, फिल्मों आदि में देखने,पढ़ने को मिलता था,उसे खुद यात्रा कर करीब से देखने, समझने जानने का मौका मिले गा।यूँ तो दिल्ली तक कई बार गया हूँ, पर दिल्ली से आगे जाने का यह पहला मौका था। 

                 मैं पहले भागलपुर से प्रत्येक दिन खुलने वाली ट्रेन विक्रमशिला एक्सप्रेस से आनन्द विहार (दिल्ली) के लिए रवाना हुआ। प्राचीन काल के तीन प्रमुख विश्‍वविद्यालयों तक्षशिला, नालन्‍दा और विक्रमशिला में से एक विश्‍वविद्यालय भागलपुर में ही था, जिसे हम विक्रमशिला के नाम से जानते हैं। उसी विक्रमशिला विश्वविद्यालय के नाम पर इस ट्रेन का नाम पड़ा है। वहीं पुराणों के अनुसार भागलपुर का पौराणिक नाम भगदतपुरम् था। जिसका अर्थ है वैसा जगह जो की भाग्यशाली हो।आज का भागलपुर बिहार में पटना  के बाद दुसरे विकसित शहरों में है।ट्रेन में बैठे खिड़की के  द्वारा तेजी से भागते दृश्यों के साथ मन में लिए कई तरह की बातों को सोचते चला जा रहा था। सफर घर के बने पराठे, सब्जी, चुड़ा फ्राई,मिठाई के साथ करना था।गुफा के बाद पकौड़े-पकौड़े की आवाज से अंजान यात्रियों को भी पता चल जाता होगा कि जमालपुर आ गया। मैं तो अक्सर चलने वालों में हूँ, सो जर्रे-जर्रे से परिचित हूॅं। 'जमालपुर में एशिया का प्रथम रेल इंजन कारखाना 08 फरवरी, 1862 को अंग्रेजों के द्वारा स्थापित किया गया था।' जमालपुर और बिहार का दुर्भाग्य है कि आजाद भारत में बिहार के नौ रेल मंत्री हुए लेकिन कारखाना के ढ़हते भविष्य को इनमें से किसी ने भी संजोने का प्रयास नहीं किया।यह कारखाना कभी भारतीय रेल की नाक हुआ करती थी,आज अपनी बदहाली पर आंसू बहा कर अपने तारणहार की प्रतीक्षा में है। कारखाने के कारण यहां सभी ट्रेनें कुछ ज्यादा देर रूकती है। कुछ लोग इसका फायदा पकोड़े खाकर लेते हैं। पुरुष यात्री  इसका आनन्द लेने ट्रेन से उतरकर प्लेटफार्म पर भी चले जाते हैं।  परिवार के साथ सफर करने वाले यात्री  ट्रेन में बैठे बैठे ही पकोड़े का स्वाद लेना उचित समझते हैं।मेरे बगल वाले सीट पर इसी तरह के एक परिवार चटनी के साथ पकोड़े बडे़ मजे से खा रहे थे।उसमें से एक व्यक्ति पकोड़े को इतने आनंदित होकर खा रहे थे कि उस जगह बैठे अन्य यात्रियों को भी उस पकोड़े के स्वाद का एहसास करा  रहा था।

           जमालपुर से निकले के बाद ट्रेन चलती रही, रुकती रही, स्टेशन निकलते गये, यात्री चढ़ते रहे, उतरते रहे। ट्रेन बिल्कुल ठीक समय पर किऊल जंक्शन पहुंच गई।विक्रमशिला एक्सप्रेस अपने आदत के अनुरूप भागलपुर से क्यूल तक सभी स्टेशनों पर रुकते हुए,यूँ कहिए पटना तक के सभी स्टेशनों पर सवारी गाड़ी के तरह रुकते हुए बिल्कुल समय पर पहुँच जाना, सफर कर रहे यात्रियों के लिए सुकून देने वाली बात थी। झारखंड के गिरिडीह से निकलने वाली एक नदी का नाम किऊल है,जो बिहार के जमुई-लखीसराय जिले से गुजरते हुए गंगा में मिल जाती है।किऊल नदी लाल बालू के लिए बिहार में प्रसिद्ध है। पानी से अधिक बालू को लेकर इसकी महत्ता है।नदी के एक छोर पर लखीसराय है, तो दूसरे छोर पर किऊल स्टेशन है। किऊल स्टेशन का नाम इसी किऊल नदी से पड़ा। खैर जो भी हो किऊल तक दिल्ली जाने वाले लगभग सभी यात्री आ चुके थे और अपने-अपने जगहों पर बैठकर निश्चित नजर आ रहे थे।कुछ यात्री घर परिवार से दूर जाने के कारण उसकी यादों में खोये खोये से दिखाई दे रहे थे। मुझे यह अच्छा नहीं लग रहा था,मै उन्हें उनके घर- परिवार की यादों से निकालना चाहता था। यादों को निकाले के लिए मेरे दिमाग में कई तरह की बातें आ रही थी, इसमें राजनीति की बातें सबसे टिकाऊ और लम्बी लग रही थी, सो लगा मैं बीजेपी की तारीफ करने।फिर क्या था कई लोग बीजेपी के पक्ष में तो कई विपक्ष में बोलने लगा।विभिन्न तरह की बातें हो ही रही थी कि तभी मैंने कांग्रेस की बड़ाई कर दी।एक बार फिर से कुछ लोग कांग्रेस के साथ नजर आने लगे तो कुछ विरोध में।मैं अब कुछ देर के लिए चुप ही रहना उचित समझा,पर अन्य यात्रियों में जोरदार बहस होने लगी। इस बहस को कांग्रेस बीजेपी तक की सीमित रखना अच्छा नहीं लग रहा था। लगे हाथ लालू,नीतीश का भी तारीफ कर ही दिया मैंने।मेरा काम तो सिर्फ तारीफ करने का था, बाकी अन्य काम अन्य यात्री जोरदार बहस के साथ कर रहे थे।अब बहस इस तरह से होने लगा कि मानों विधानसभा या संसद भवन में बहस हो रहा हो। मैं शांत होकर चुपचाप मजे लिए जा रहा था,कि तभी जमालपुर में बड़े स्वाद से पकोड़े खाने वाले व्यक्ति अपने बातों से इस बहस को वेस्वाद कर दिए! वे मेरे से सवाल भरे  लहजों में बोले आप किस पार्टी से हैं,जो सभी पार्टियों का तारीफ किए जा रहे हैं और इन लोगों को आपस में लड़ाये जा रहे हैं? उस जगह बहस कर रहे यात्रियों का एका-एक मेरे तरफ ध्यान आ गया। मैं बस मुस्कुरा भर दिया। तब तक विभिन्न स्टेशनों पर रुकते हुए ट्रेन पटना पहुंचने ही वाली थी। बहुत देर से एक ही जगह बैठे-बैठे मेरे पांव भी चहल-कदमी करना चाह रहा था,सो वहाँ से उठ कर चला जाना ही उचित प्रतित हुआ। 

               बिहार के दूसरे बड़े शहर भागलपुर से यात्रा प्रारंभ करने के बाद मैं अब बिहार के सबसे बड़े शहर राजधानी पटना में था। कहा जाता है कि 'पटना संसार के गिने-चुने उन विशेष प्राचीन नगरों में से एक है जो अति प्राचीन काल से आज तक आबाद है। पूर्व रेलवे ने 1 अक्टूबर 1 9 48 को एक विशेष रूप से तीसरी श्रेणी के एक्सप्रेस ट्रेन को 'जनता एक्सप्रेस' के रूप में चलाना शुरू किया था। यह शुरू में पटना और दिल्ली के बीच चल रहा था और बाद में इसे 1 9 4 9 में दिल्ली से हावड़ा तक बढ़ा दिया गया था। यह भारत में पहली जनता एक्सप्रेस ट्रेन थी।'

                     शाम के 6:00 बज चुके थे, ट्रेन पटना से खुल चुकी थी।पटना तक सवारी गाड़ी के तरह चलने वाली विक्रमशिला एक्सप्रेस सही मायने में पटना के बाद ही एक्सप्रेस का रूप धारण करती है।भागलपुर से दिल्ली तक 21घंटों में(अगर समय से चले तो) सफर पूरा करने वाली विक्रमशिला एक्सप्रेस टोटल 21 स्टेशनों पर रूकती है,जिसमें से 18 पटना के पहले तो वही पटना के बाद मात्र दो मुगलसराय और कानपुर सेंट्रल स्टेशनों में रूकती है। ट्रेन में हुए इस बदलाव से साय साय की आवाज के अलावे कुछ और सुन पाना संभव नहीं था,अतः सभी लोगों को शांत होकर बैठ जाना ही ठीक लगा। कुछ लोग ताश के साथ तो कुछ लोग अपने मोबाइल के साथ व्यस्त हो गए। मेरा अपर बर्थ था सो मैं भी वहॉ जाकर अपने मोबाइल मैं व्यस्त हो गया। कुछ देर के बाद भूख की एहसास होते ही खाना खाकर सो गया। अगले दिन यानि 7 सितंबर 2019 को लगभग 3 घंटे की लेट से मेरी ट्रेन आनंद विहार टर्मिनल में थी। मेरी अगली ट्रेन पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन से शाम को 7:35 में थी। आनंद विहार टर्मिनल से बाहर निकल कर पुरानी दिल्ली स्टेशन जाना के लिए बस पकड़ ली।

डाॅ. आलोक प्रेमी भागलपुर (बिहार)  9504523693


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