दिल्ली से आगे जाने की उत्सुकता मेरे उपर इस कदर हावी हो रही थी कि रात 9.00 दिल्ली स्टेशन आने वाली कालका मेल ट्रेन के लिए मैं दोपहर दो बजे ही प्लेटफार्म पर जाने लगा,वैसे भी बाहर रहकर समय नहीं कट रहा था। गेट पर जाते ही मुझे यह कहकर रोक दिया गया कि आप शाम 7.00 के पहले अंदर नहीं जा सकते हैं। मायूस होकर सात बजने का इंतजार करने लागा। कभी इधर जाता, कभी उधर जाता। समय उसके बाद भी कटते नहीं कटता। अब तो मोबाइल भी पावर की तलाश में व्याकुल हो रहा था। 6:00 बजे के आसपास एक बार पुनः प्लेटफार्म पर प्रवेश करना चाहा, इस बार किसी ने नहीं रोका।अंदर जाते ही मोबाइल चार्ज करने के लिए जगह की तलाश करने लगा। सामने खाली पड़े चार्जिंग पॉइंट देखते ही झट से मोबाइल को चार्ज में लगा दिया। चार्ज में लगाते ही मेरे मोबाइल की पावर व्याकुलता तो खत्म हो गई, पर मुझे अभी भी इंतजार था अपने उस ऐतिहासिक ट्रेन जिसका नाम नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के साथ भी जुड़ा है। धनबाद और गया के बीच स्थित गोमो स्टेशन पर नेताजी इसी ट्रेन में 18 जनवरी,1941 को सवार होकर अंग्रेज हुकूमत की आँखों में धूल झोंककर गायब हो गए थे। हावड़ा कालका मेल भारतीय रेल की सबसे पुरानी ट्रेनों में से एक है। 'एक जनवरी 1866 को कालका मेल पहली बार चली थी। उस वक्त इस ट्रेन का नाम 63 अप हावड़ा पेशावर एक्सप्रेस था।' इस ऐतिहासिक ट्रेन के इंतजार में मैं कभी कुर्सी पर बैठ रहा था, तो कभी चहल कदमी करने लगता।इसी बीच में घोषणा की गई कि हावड़ा कालका मेल लगभग 2 घंटे की विलंब से दिल्ली स्टेशन आये गी।घोषणा से मुझे कोई ज्यादा हैरानी नहीं हुई।भारतीय ट्रेनों की यह तो आदत सी है, उसके अनुरूप यह भी चल रही है।
हावड़ा कालका मेल 2 घंटे की विलंब से रात्रि के 11 बजे खचा-खच भरे डिब्बों के साथ पुरानी दिल्ली स्टेशन प्लेटफार्म संख्या 5 पर आकर खडी़ हो गई।भीड़ देखकर लगा शायद आज आरामदायक सफर नहीं होने वाला है, पर वह भीड़ दिल्ली तक के लिए ही थी। बंगाल झारखंड बिहार उत्तर प्रदेश के यात्रियों को लेकर कालका तक जाने वाली कालका मेल के ज्यादातर यात्री राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में ही उतर जाते हैं।यात्रियों के उतर जाने के बाद मैं S-7 के 39 नंबर सीट पर अभी बैठा ही था, कि तभी एक सुंदर सी लड़की कर्कश आवाज में बोलती है "हटिए यह सीट मेरा है।" यह बोलकर वह अपने साथ लाए हुए बहुत सारे सामानों को सीट के नीचे रखने लगी। कोमल सी दिखने वाली पूर्णिमा के चाॅंद सा चेहरे के गोल मुख से झन्नाटेदार आत्मविश्वास भरे आवाज नें मेरे आत्मविश्वास में सेंध लगा दिया, और मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया कि कहीं मैं दूसरे ट्रेन में तो नहीं चढ़ गया। सोचते हुए बड़ी विनम्रता से बोला यह कौन सी ट्रेन है ? एक बार पुनः झन्नाटेदार आवाज मेरे कानों से स्पर्श होते ही मुझे मजबूर कर दिया अपने सीट पर बैठे रहने के लिए। वे मेरे सवालों का जवाब देते हुए बोली 'ट्रेन का नाम तक नहीं पता और चले हैं ट्रेन में सफर करने वह भी दूसरे के सीट पर, हटते हैं कि टीटी को बुलाऊँ। यह ट्रेन कालका मेल है।और मुझे कालका जाना है।' इस बार मैंने भी थोड़े कड़े आवाज में कह दिया कि जाइए आप टीटी को ही बुला लाइये। वे तनतनाना के मुड़ी और टीटी को बुलाने चली गई। टीटी भाई साहब भी लगा बगल में ही थे, क्योंकि वे भी बड़े जल्दी आ गए। वे आते ही मेरे टिकट को बिना देखें उस सीट को छोड़ देने का फरमान सुना दिया। ऐसी स्थिति में मैं भी कहाँ रुकने वाला था? तपाक से बोल ही दिया, यह सीट मेरा है और कालका तक मुझे किसी को दम नहीं है उठाने का। मेरी बातों से टीटी भाई साहब को बुरा लग गया।वे कुछ बोलते इसके पहले वह लड़की अपने टिकट को दिखाते हुए एक बार फिर से वही कर्कश आवाज में कहती है, यह टिकट मेरा है, और मैं आपको अभी यहाँ से उठाऊंगी।आप उठकर यहाँ से जाएगें भी। तब तक मैं भी अपना टिकट निकाल चुका था।टिकट देखते ही टीटी भाई साहब उस लड़की पर झलाते हुए अपने डिब्बे में जाने को बोल कर अपने पुराने स्थान के लिए प्रस्थान कर गए। इस बात को सुनते ही वह अपने टिकट को गौर से देखने लगी। जिसमें साफ-साफ दिखाई दे रहा था, सीट नंबर तो वही है। पर डिब्बा S-3 है।अब उस लड़की का उतरा हुआ चेहरा मुझसे देखा नहीं जा रहा था।अच्छा भी नहीं लग रहा था। इसी बीच मीठे आवाज में सॉरी बोल कर वे वहाँ से जाने लगी। मैं उनकी परेशानियों को समझ रहा था। एक तो वह अकेले थी, उसके बाद बहुत सारा समान भी। S-7 से S-3 तक इन सामानों को ले जाते जाते उनको बहुत कठिनाइयों से गुजरना पड़ता। इसलिए मैंने फैसला किया कि क्यों नहीं मैं ही उसके सीट पर चला जाऊ। वैसे भी मुझे सोना ही था। मैंने उनसे कहा अगर आपको यहीं रहना है तो रह जाए। मैं आपके सीट पर चला जाता हूँ। उसने मेरे तरफ आशा भरी निगाहों से देखा। और कुछ छन में ही थैंकयू बोलकर मेरे जाने का इंतजार करने लगी। मैंने अपना बैग लिया और चल दिया S-3 की ओर! अब ट्रेन भी पूरे रफ्तार में चल रही थी। मैं उसके सीट पर आकर बहुत सारी बातें सोचने लगा। सोचते सोचते पता ही नहीं कब ऑंख लग गई!
डाॅ. आलोक प्रेमी भागलपुर (बिहार) 9504523693
भाग-3 में पढ़े कैसे प्रकृति की सुंदरता देखते थक गया।
भाग एक पढ़े
0 टिप्पणियाँ