'दशहरा स्पेशल'
रामलीला अपने अंतिम दौर पर थी। राम हाथों में धनुष बाण लिए, अपने सन्मुख खड़े रावण का संहार करने से पहले, विचलित सा इधर -उधर घूम रहा था। दर्शक बड़ी उत्सुकता से नजरें जमाए मंच की ओर टकटकी लगाए देख रहे थे।हर वर्ष यही होता है, फिर भी देखने वालों की नजरों में उत्सुकता हमेशा बनी रहती है।
कि क्या होने वाला है? लगता है जैसे उत्सुक निगाहें प्रश्न कर रही हों, कि क्या इस वर्ष रावण सचमुच मारा जाएगा, या फिर बच कर भाग निकलेगा।
राम ने अपना धनुष संभाला। तरकश से तीर निकाल निशाना साधा। विभीषण ने राम के पास आकर हौले से कान में कुछ फुसफुसाया और चला गया। राम किंकर्तव्यविमूढ़ सा अपनी जगह खड़ा रहा। विभीषण पुनः राम के करीब आया। और राम को समझाने की मुद्रा में आगे बढ़ा। इस बार 'मंचीय राम' ने उसकी बात सुने बिना उसे धक्का दे दिया।यह देख दर्शक हँसने लगे।
राम बोझिल मन, उदास चेहरा, भारी कदमों से, रावण की और बढ़ने लगा।तो हँसने वाले दर्शकों में कौतूहल उभर आया। सबके सब जानने को उत्सुक हो उठे कि
राम ऐसा क्या करने वाला है? क्या हर वर्ष की भाँति राम इस बार रावण को तीर से नहीं मारने वाला? या फिर
शायद राम कुछ नया करने के इरादे से रावण के इतने करीब जा रहा है।
राम को अपनी ओर आता देख, 'मंचीय रावण' का कंठ सूखने लगा। मन ही मन सोचने लगा, कहीं इस बार राम किसी नयी विधि से उसका संहार तो नहीं करने वाला।रावण अपनी जगह से पीछे को खिसकने लगा।दर्शकों में हलचल मच गई। सब अपनी-अपनी जगह पर खड़े हो गये। राम रावण के करीब पहुंचा। उसने अपना धनुष बाण रावण के हाथों में सौंप दिया। और कहा:-"ये लो धनुष बाण और तुम मुझे मार दो। क्योंकि लाखों वर्षों से मैं तुम्हें मारता आ रहा हूं, पर तुम कभी नहीं मरे।
आज मुझे मार कर तुम यह साबित कर दो कि तुम मुझसे अधिक बलवान हो। और फिर अपने अंदर की आग को ठंडा कर इस संसार से हमेशा के लिए विदा हो जाओ। क्या तुम्हें पता है, बुराई पर अच्छाई की जीत देखने को एकत्रित हुए ये लोग, खुद को इतना अधिक असहाय समझते हैं ,कि हर वर्ष इकठ्ठे हो, मेरे माध्यम से तुमको हारता हुआ देखना चाहते हैं। जबकि मैं चाहता हूँ कि, यह अपनी लड़ाई स्वयं लड़ें।
इसलिए तुम मुझे मारकर, मेरी आड़ में इन सबके हृदय में व्याप्त कुछ भी न कर पाने की अयोग्यता को समाप्त कर दो। इन्हें पता ही नहीं कि, आज इस युग में तुमसे ज्यादा तो ये मेरे नाम का त्रास झेल रहे हैं।
कैसे बताऊं मेरे नाम का सहारा लेकर कपटी लोग, मासूम लोगों की भावनाओं से खेल रहे हैं। मेरे नाम का उद्घोष कर संत साधु का वेश धर कर पापीजन बच्चियों का शोषण कर रहे हैं। लोग मंदिरों में बुत खड़े कर राम का सजदा करते हैं।अपनी फरियाद राम तक पहुँचाने के लिए तरह- तरह के यत्न करते हैं। पर हमेशा पाखंडियों के फेर में फँसते हैं।
मैं इन भोले -भाले लोगों को कैसे यकीन दिलाऊँ कि, आज राम के नाम पर धंधा चलाने वाले किसी प्रकार से, किसी के भी कष्ट निवारण करने के योग्य नहीं। राम नाम का चोला पहनने से कोई भी 'मर्यादा पुरुषोत्तम राम' नहीं हो जाता। मार दो मुझे ताकि मेरे नाम पर चलने वाली लूट बंद हो जाये। और ये नादान लोग अच्छे से समझ जायें कि मैं इस कलयुग में मर चुका हूँ।
और अब कोई दूसरा राम किसी भी रुप में अवतरित नहीं हो सकता।
मेरी मृत्यु देख निश्चित ही ये सभी, मेरे लिए अपनी नासमझी भरी खोज को बंद कर देंगे, ये टकटकी लगा, हमें देखने वाले भोले -भाले लोग इतने अधिक आस्थावादी हैं, कि जब कभी भी राम का वेश धरकर मैं मंच की ओर बढ़ता हूँ, तब मुझसे दुगुनी उम्र की स्त्रियाँ- पुरुष मेरे पाँव छूते हैं। सच कहूँ तो बहुत शर्म आती है।
हे ! रावण! तुम कभी नहीं मरते, तुमको मारने का नाटक करने में हर बार मेरी आत्मा मरती है।लोग तुम्हारे मेरे युद्ध की प्रतीक्षा हर वर्ष करते हैं। मतलब सब हमें जिंदा मानते हैं। तुम उनके दिलों में डर के रुप में जिंदा रहते हो। और मैं अर्थात् राम, उम्मीद के रुप में।
अगर मुझे सचमुच मारने का अधिकार प्राप्त हो गया तो, मैं बहुत से ऐसे रावण पृथ्वी से खोज कर मिटा दूँगा जिन्होंने, जगह- जगह सोने की लंका खड़ी कर रखीं हैं। और अपनी राक्षसी प्रवृत्तियों से हाहाकार मचा रखी है।
क्षमा करना, अब मैं तुम पर बाण नहीं चला पाऊँगा। हो सके तो तुम ही मेरी लीला समाप्त कर दो। ताकि सब झूठी आस्था की नींद से जाग जायें।
राम का विलाप सुन रावण ने झुककर राम के पाँव पकड़ लिये और बोला:-" तुम जिसके प्रतीक बन करोड़ों दिलों में बसते हो, तुम्हें उन सबके विश्वास का वास्ता, इस बार कोई ऐसा तीर चलाओ, जिससे कपटी लोगों के अंदर जो विष का घड़ा भरा है, वह फूट जाए, और समस्त समाज सुखी हो जाये।"
मीना अरोड़ा
हल्द्वानी
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