हाथों में सजी मेहंदी की लाली-ज्‍योति ज्‍वाला

 हाथों में सजी मेहंदी की लाली,

माँग सजा सिंदूर,

पिया की राह निहारे गोरी

जो बैठे अति दूर,


वतन भी प्यारा सजन भी प्यारा

क्या समझूँ क्या धर्म हमारा

प्रेम के दीप से जगमग दुनिया

मगर विरह से घर अंधियारा,


सीमा प्रहरी बन खड़े हुए हैं

गन शत्रु के सीने पर ताने

मंगलसूत्र की मोतियों से

कई यादें छोड़ गये सिरहाने,


करवा चौथ के पावन व्रत की

सारी रसम निभाऊँगी,

वीर सैनिक की वीरांगना पत्नी

बनकर दिख लाऊँगी,


दूर निगाहों से पर यकीं है

उनकी मूरत देखूँगी,

वो चांद देखेंगे सरहद से

मैं चांद में सूरत देखूँगी,


यादों में स्वामी सदैव ही

हमारे हृदय के पास रहेंगे,

इस करवा चौथ माँ भारती की

सेवा में हम उपवास रहेंगे


राष्ट्रभक्ति, मातृभूमि की सेवा

फिर कोई ज़िम्मेदारी है,

सैनिक की पत्नी हूँ विरह भी

देशहित में मुझको प्यारी है,


पहले पुत्र हैं भारत माँ के

पति,पिता उसके बाद बने,

घर आंगन सूना हो किंतु

ये देश सदा आबाद बने,,


निज रिश्तों की डोर में उलझ के

आग नहीं लगने देना

मां के आंचल पर दुश्मन के हाथों

दाग नहीं लगने देना,


मैं इंतजार कर लूँगी वर्षों

एक दिन तो वापस आयेंगे

तुम सरहद से, हम घर से

सेवा का धर्म निभायेंगे


ज्‍योति ज्‍वाला सिगरौली 



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