कहॉं आ गये- अनंग

 "कहां आ गए"

मौसमों की तरह वो, बदलने लगे ।

आदमी -आदमी से , बिछड़ने लगे ।। 

भावनाओं के खत हैं,नाआंसू खुशी।

नौजवानों को देखो, अकड़ने लगे ।।

वे पड़ोसी हैं ,हमको पता ही नहीं ।

हाल पूछा ही था कि,झगड़ने लगे।।

पालतू  जानवर  के , करीबी  हैं  वे। 

हमने हंस करके बोला,बिगड़ने लगे।।

दो बुजुर्गों को देखा तो,हम भी गए।

घर ठहाकों से गूंजा, उखड़ने लगे ।।

इन शहर की हवाओं में,बदबू भरा।

लौट के गांव देखा , उजड़ने लगे ।। 

हम कहां से चले थे,कहां आ गए। 

चार पैसे जो आए ,तो  उड़ने लगे।।....................

."अनंग", गाजीपुर 


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