दुर्दशा पर आँसू बहाता हुआ यह किशोर दा का जन्मस्थल-घनश्‍याम मैथि‍ल

खंडवा | यूँ तो बचपन से खंडवा का नाम खूब सुन रखा था अग्रज साहित्यकार पत्रकार स्वतंत्रता संग्राम सेनानी यानी 'एक भारतीय आत्मा : दादा माखनलाल चतुर्वेदी ' की कर्मभूमि के कारण , ख्यातिप्राप्त पार्श्वगायक अभिनेता किशोर कुमार की जन्मभूमि के कारण साथ ही महान आध्यत्मिक सन्त दादा धूनी वाले की पावन तपस्थली एवम लीला- भूमि के कारण ,इसके साथ ही साहित्यकार पद्मश्री रामनारायण उपाध्याय और प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री रहे सादगी से भरे जनसेवक श्री भगवंतराव मंडलोई के नगर के रूप में सदैव इस नगर के प्रति एक आत्मीय और भावनात्मक लगाव रहा है |
अनेक बार मुम्बई जाना हुआ तो सदैव खंडवा को रेलवे स्टेशन पर गाड़ी खड़े होने पर अपलक निहारा है और उसे अपने में महसूस किया है ,यहां की समृद्ध सांस्कृतिक ,साहित्यिक विरासत को सदैव ह्रदय से अपने में अनुभव किया है | ट्रेन जैसे ही छूटती तो लगता जैसे अपना कुछ छूट रहा है ,मन करता कि आगे की यात्रा निरस्त कर यहीं उतर जाऊं और खंडवा की गलियों सड़कों पर घूमूं , और मन मसोस कर रह जाता |
फिर एक बार खंडवा जाने का अवसर मिला तो मित्र की शादी में परन्तु यह यात्रा भी केवल एक वैवाहिक यात्रा वह भी चन्द घण्टों की होकर रह गयी और खण्डवा को जीने खण्डवा को अनुभव करने की साध फिर अधूरी की अधूरी ,फिर एक बार सुयोग बना खंडवा उतरना हुआ जब साहित्य अकादमी मध्यप्रदेश सँस्कृति परिषद द्वारा ओंकारेश्वर में आयोजित पाठक मंच कार्यशाला में अग्रज कीर्तिशेष गीतकार और निराला सृजनपीठ के निदेशक दिवाकर वर्मा के साथ इस आयोजन में जाना हुआ और खंडवा से बस पकड़कर ओंकारेश्वर रवाना हुए ,यानी खंडवा भूमि का बार-बार स्पर्श होता पर खंडवा से मुलाकात नहीं हो पा रही थी |
आखिर मन की मुराद पूरी हुई और विगत रविवार को खंडवा निवासी मित्र श्री जितेंद उपाध्याय के आमंत्रण पर दादा धूनी वाले के दरबार में उनके दर्शनों का सुयोग बना ,और मैं अपने एक अन्य मित्र पूर्व में खंडवा निवासी और वर्तमान भोपालवासी मित्र संजय विन्चनकर और पत्नी श्रीमती मेघा मैथिल ,बिटिया वृष्टि तथा बेटे विकल्प के साथ सुबह 7 बजे अपनी गाड़ी से खंडवा रवाना हुए ,और लगभग 275 किलोमीटर की शानदार आरामदायक , शांत सघन वनों से आच्छादित टेडी-मेडी ,सुरम्य पहाड़ियों से घिरी सड़क मार्ग यात्रा आष्टा से खातेगांव ,पुनासा,इंदिरासागर बांध,मूंदी होते हुए लगभग दोपहर 12 बजे खंडवा पहुंचे |
खंडवा में सर्वप्रथम माँ जगदम्बा तुलजा भवानी के प्राचीन मंदिर के दर्शन किये ,ततपश्चात दादा धूनी वाले के आश्रम में दर्शन-पूजन कर टिक्कड़ का प्रसाद पाया | दादा जी ने चमत्कारिक लीलाएं दिखाते हुए यहीं 1930 में समाधि ले ली थी उनके द्वारा प्रज्ववलित धूनी आज भी यहां प्रज्ववलित है खंडवा का लगभग हर नागरिक 'दादा धूनी वाले ' को अपना आराध्य मानता है,उनका जयकारा लगाता है ,प्रत्येक वर्ष गुरुपूर्णिमा को यहां देश विदेश से लाखों दादा जी के भक्त आते हैं ,तब खण्डवा का दादा के प्रति समर्पण त्याग और आदरभाव देखते ही बनता है ,यहां दादा जी और उनके शिष्य छोटे दादा जी के समाधि स्थल और उनके द्वारा उपयोग की गई दुर्लभ वस्तुओं को देखना बड़ा विस्मयकारी अनुभव है |
दादा जी धाम से निकलकर हम पहुंचे महान पार्श्व गायक किशोर कुमार के स्मारक स्थल जहां आजकल विश्राम-घाट भी बना हुआ है ,यहां उपस्थित केयर-टेकर ने दोपहर में समाधि-स्थल के मुख्य- द्वार पर ताला जड़ रखा था | वह हमें अंदर प्रवेश करने से मना कर रहा था ,फिर हमारे खण्डवा निवासी मित्रों के अनुरोध और भोपाल से आने की बात कहने पर उसने जैसे तैसे ताला खोला | वह कह रहा था साहब क्या करें यहां आवारा और असामाजिक तत्वों का जमावड़ा लगा रहता है इसलिए ताला बन्द कर रखना पड़ता है ,हमने किशोर दा के यादगार चित्रों से सजे छोटे किंतु हरे-भरे स्मारक स्थल में प्रवेश कर किशोर दा को नमन किया | स्मारक अभी नया बना है पर देखरेख का अभाव और जागरूकता की कमी के चलते उसपर पीपल के बड़े- बड़े पेड़ उग आए हैं और टाइल्स उखड़ने लगे हैं ,और दुःख की बात है जो चौकीदार हमसे दिया-बाती और अगरबत्ती के लिए कुछ पैसे मांग रहा था ,और आसामाजिक लोगों के आने की बात कह रहा था वही अंदर समाधि स्थल के बगल में बैठे कुछ लोग मदिरा-पान करते दिखे ,हमें देख वे अपने गिलास और नमकीन छिपाने लगे ,बाद में स्थानीय लोगों ने बताया ' बागड़ ही खेत को खा रही है यहां की सुरक्षा और साफ-सफाई के लिए जो व्यक्ति तैनात है ,वही खुद लोगों के साथ बैठकर यहां दारू पीता है| 'जानकर बहुत दुःख हुआ | हम कहाँ से कहां जा रहे हैं और तुच्छ स्वार्थों के लिए अपना सर्वोच्च कुछ भी दांव पर बेशर्मी से लगाने को तैयार हैं |
हमने स्मारक स्थल के सामने एक भोजनालय में मालवा का सुप्रसिद्ध सुस्वादु दाल-बाफले-चूरमा का भरपेट तृप्ति-दायक भोजन किया ,देशी घी और अपनेपन से तर होटल मालिक विकास भाई दवे ने मात्र 70 रुपये थाली में जो भोजन अपनेपन की आत्मीयता से करवाया वह लंबे समय तक याद रहेगा |
यहां से हम बॉम्बे बाजार स्थित किशोर दा के घर पहुंचे तो खण्डवा में हमारा दिल खण्ड-खण्ड (टुकड़े-टुकड़े ) हो गया | घने बाजार में स्थित अपनी दुर्दशा पर आँसू बहाता हुआ यह किशोर दा का जन्मस्थल इतना उपेक्षित ,अपनी आंखों पर जैसे विश्वास ही नहीं हुआ तब सहसा गीतकार नीरज के लिखे और किशोर दा के 'गैम्बलर' फ़िल्म का देवानन्द पर फिल्माया यह गाना ओठों पर आया -'दिल आज शायर है गम आज नगमा है शब ये ग़ज़ल है सनम..!' पूरा गाना हवेली की दुर्दशा पर सटीक बैठता है |
आभास कुमार गांगुली जो फिल्मों के रुपहले संसार में किशोर कुमार के नाम से मशहूर हुए उन्होंने इसी घर में 4 अगस्त 1929 को प्रसिद्ध वकील कुंजीलाल और माँ गौरी के घर जन्म लिया ,आज भी घर के लोहे के दरवाजे पर 'गांगुली-हाउस' के साथ 'गौरी-कुंज' अंकित है | सारा मकान जर्जर हो चुका है जगह-जगह पेड़ उग आए हैं ,यह स्थानीय प्रशासन द्वारा खतरनाक घोषित हो चुका है जो कभी भी भरभराकर गिर कर बीता हुआ इतिहास बनने को तैय्यार है |
कितने दुःख की बात है जिस मस्तमौला किशोरकुमार की सांस-सांस में खण्डवा बसता था ,जो मुम्बई में रहकर भी कभी मुम्बई के नहीं बन पाए,जो अपनी जननी और जन्मभूमि और वहां के लोगों बचपन के मित्रों को तहेदिल से याद करते रहे तथा अपने आपको गर्व से सदैव 'किशोर कुमार खंडवा वाला ' कहते रहे ,तथा 'दूध जलेबी खाएंगे खण्डवा में बस जाएंगे' कहते हुए कभी नहीं अघाते थे ,जिन्होंने अपनी वसीयत में अपने अंतिम संस्कार की इच्छा खण्डवा में करने की जताई थी उस खण्डवा के लोगों ने इतना उपेक्षित कैसे कर दिया अपने प्यारे किशोर को |
किशोर दा के गौरी-कुंज में घुसते ही एक जर्जर तखत पड़ा हुआ है और कुछ धूल-धूसरित दैनिक उपयोग का बहुत ज़रूरी सामान वहीं किशोर दा के कुछ चित्र लगे हैं ,यह सामान है किशोर दा के पुराने मित्र और यहां की देखरेख करने वाले बुजुर्ग सीताराम का जो वर्षों से यहाँ रह रहे हैं और किशोर दा के साथ दीवार पर अपना टँगा हुआ चित्र शान से दिखाते हुए उनकी बुझी हुई आंखे कुछ देर के लिए चमक सी जाती हैं ,वे किशोर दा से जुड़े अनेक किस्से सुनाते है कि साल में एक दो बार जब भी किशोर दा अपने घर आते थे तो कैसी महफिलें जमा करती थी और किशोर अपने बचपन के मित्रों को कैसे नाम ले लेकर बुलाया करते थे ,वे भले कोई छोटा सा भी काम करते हों उन्हें बाहों में भर लेते थे |
हमारी उपेक्षा संवेदनहीनता का इससे बड़ा उदाहरण क्या होगा कि महान किशोर दा की इस पावन जन्मभूमि की एक दीवार पर लाल अक्षरों से लिखा है "यहां पेशाब करना मना है |" यह चेतावनी यहां लिखने की क्या ज़रूरत आन पड़ी तो वहां उपस्थित बुजुर्ग चौकीदार सीताराम ने बड़े दुःख के साथ बताया कि साहब यह बाजार है और मकान सूना मौका देखकर लोग पेशाब करने से बाज नहीं आते मैं बूढ़ा आदमी किस किस से लड़ूँ | अब भला यह भी कोई लड़ने की बात है ,यह मकान कोई साधारण मकान नहीं यह मकान कोई ईंट-गारे से बनी इमारत भर नहीं यह मकान हमारी श्रद्धा का केंद्र हैं ,जिस मकान को दुनिया भर लोग एक नज़र देखना चाहते है ,इस द्वार की चौखट पर माथा टेककर स्वयम को धन्य समझते हैं ,वहां कोई इतना कृतघ्न भी हो सजता है की वहाँ थूके मूते या गंदगी फैलाये |
रफी-मुकेश-मन्नाडे की तिकड़ी के बीच अपनी जगह बनाने वाले अभिनय के साथ हजारों हिंदी के साथ ही बंगाली,भोजपुरी ,मराठी,गुजराती,उड़िया सहित अनेक भाषाओं यादगार गीतों के अमर गायक जिनके नाम पर प्रतिवर्ष किशोर कुमार सम्मसन दिया जाता हैं ,सँस्कृति विभाग लाखों रुपये फूँकता है,उस महान कलाकार का जन्मस्थान इतना उपेक्षित सरकार, खण्डवा के जनप्रतिनिधि ,समाजसेवी ,व्यापारी आगे आएं ,इस भवन को अधिग्रहीत करें ,जो भी है जिस हाल में है उसे संरक्षित करें ,आपने पोरबन्दर स्थित बापू की जन्मस्थली देखी होगी ,प्रयाग में नेहरू जी का निवास आनन्द भवन ,कितने दुरुस्त हैं जब हम रख-रखाब से हजारों साल पुराने ताजमहल, कुतुबमीनार सहित कई प्राचीन धरोहरों को सुरक्षित रख सकते हैं तो क्या किशोर दा के मकान को उसके मूल स्वरूप में सुरक्षित नहीं रख सकते |
'अमर प्रेम' में सही गाना गाया था किशोर दा ने ' चिंगारी कोई भड़के तो सावन उसे बुझाए,जो सावन आग लगाये उसे कौन बुझाये | ' यहां तो उनके घर को अपने खण्डवा के लोग ही मिटाने को उतारू हैं फिर उसे कौन बचाये | यहां से निकलकर कुछ देर बगल में स्थित खण्डवा के साहित्यिक तीर्थ माणिक्य वाचनालय भी गए,जहां दादा माखनलाल चतुर्वेदी,महादेवी वर्मा, बालकवि बैरागी सहित अनेक नामचीन हस्तियां आती रहीं जहां दुर्लभ पुस्तकों का अनूठा विपुल भंडार है ,चलते-चलते कभी साप्ताहिक 'कर्मवीर' के कार्यालय रहे और अनेक कालजयी रचनाओं के साक्षी दादा माखनलाल का घर भी देखा,जहां आज बड़ा सा भवन बन गया है ,पद्मश्री दादा रामनारायण उपाध्याय के निवास को भी दूर से चलते-चलते प्रणाम किया |
आज भी यहां सुप्रसिद्ध निबंधकार डॉ श्रीराम परिहार , कवि लेखक श्री गोविंद गुंजन, व्यंग्यकार श्री कैलाश मण्डलेकर ,दोहाकार कवि श्री दिनेश शुक्ल साहित्यकार श्री प्रताप राव कदम ,श्री गोविंद शर्मा सहित अनेक अग्रज अपनी कलम से हिंदी साहित्य को समृद्ध कर रहे हैं अग्रज साहित्यकार कीर्तिशेष जगन्नाथ प्रसाद चौबे वनमाली के सुयोग्य पुत्र साहित्यकार शिक्षाविद श्री संतोष चौबे भी वनमाली सृजनपीठ के माध्यम से यहां साहित्य सँस्कृति की अलख जगाए हैं | बस खण्डवा की इस संक्षिप्त यात्रा में यही मलाल रहा कि 'आने वाला पल जाने वाला है ' हम इस बात को समझें और किशोर दा के चाहने वालों को यह अवसर न दें कि वो गायें 'कोई हमदम न रहा कोई सहारा न रहा / 'दिल ऐंसा किसी ने मेरा तोड़ा ' गाना गाने का अवसर ना दें | अपनी पहचान अपनी विरासत को बचाएं जैसे अपना घर बचाते हैं ,जैसे दादा जी की जयंती गुरुपूर्णिमा पर पूरे नगरवासी पूरे जोश पूरे समर्पण से देशभर से आये दादा भक्तों की सेवा में समर्पित होकर लोगों का दिल जीत लेते हैं ,वैसे ही इस मत्वपूर्ण किशोर दा के घर को अपनी पहचान अपनी विरासत समझ उसको बचाने आगे आएं | चलते-चलते यह मेरे गीत याद रखना कभी अलविदा न कहना |




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